भोर की आहट भर थी ,
भोर नहीं हुई थी ,
मैंने माँ गंगे से पूछा -
हे ! पतित पावनि ,
पापहारिणी ,
माँ गंगे !
शीतल , निर्मल
स्वच्छ धाराओं संग ,
छल - छल, कल - कल कर
बहती रहती हो अनवरत , अबाध ,
कभी भगीरथ की प्रार्थना से
द्रवित हो ,
तुम धरती का उद्धार करने
अवतरित हो ,
मौज में बहने लगीं ,
पर , अब सभी कहते हैं , कि
गंगा मैली हो गई है ......
और ,
इस मैली गंगा के आँचल की सफाई
वर्षों से हो रही है ,
करोड़ों खर्च हुए ,
करोड़ों खर्च हो रहे हैं ,
करोड़ों खर्च होंगे
पर , तुम्हारा आँचल
मैला का मैला ही रहा ,
ऐसा क्यूँ ?
माँ की अधरों पर
एक निश्छल मुस्कान उभरी ,
कहने लगीं -
वत्स ! माँ का आँचल तो
कब से मैला ही है ,
मैं बार - बार धोती हूँ ,
बार - बार साफ करती हूँ
और तुम हो कि
इसे बार - बार मैला कर देते हो ,
फिर पूछते भी हो !
अरे !
करोड़ों खर्च करो या अरबों ,
रुपयों से भला माँ का आँचल
कैसे साफ होगा
जब, हमारे पुत्रों का
मन ही मैला हो ?
यह आँचल धन से नहीं ,
मन और तन के श्रम से
साफ हो सकेगा .......
मेरे जीर्ण - शीर्ण जीवन पर
कौन ध्यान देता है ,
सभी अपने नाम की
डुगडुगी पिटवाते हैं ,
और ,
हमारे ही तट पर बैठ कर
सन्यासी बन जाते.हैं ।
जब व्यवस्था में ही दोष हो
और , मन में भी खोट हो ,
तो ,
एक मेरा ही दामन क्या
सभी का दमन मैला ही रहेगा ,
चाहे जितनी चन्दन घिसो ,
चाहे जितना तिलक लगाओ ।
अब कोई भगीरथ नहीं ,
जिसने जनकल्याण के लिए
वर्षों तपस्या कर
मुझे इस धरा पर लाया।
अब तो
सभी शाशक
और
सभी शोषक बने हैं ,
जनकल्याण की भावना
विलुप्त हो गई है
और लक्ष्य
स्वकल्याण और स्वसत्ता पर
केंद्रित हो गई है
और मैं !
मैली की मैली
रह गई हूँ ........
---- ( प्रकाशित )
भोर नहीं हुई थी ,
मैंने माँ गंगे से पूछा -
हे ! पतित पावनि ,
पापहारिणी ,
माँ गंगे !
शीतल , निर्मल
स्वच्छ धाराओं संग ,
छल - छल, कल - कल कर
बहती रहती हो अनवरत , अबाध ,
कभी भगीरथ की प्रार्थना से
द्रवित हो ,
तुम धरती का उद्धार करने
अवतरित हो ,
मौज में बहने लगीं ,
पर , अब सभी कहते हैं , कि
गंगा मैली हो गई है ......
और ,
इस मैली गंगा के आँचल की सफाई
वर्षों से हो रही है ,
करोड़ों खर्च हुए ,
करोड़ों खर्च हो रहे हैं ,
करोड़ों खर्च होंगे
पर , तुम्हारा आँचल
मैला का मैला ही रहा ,
ऐसा क्यूँ ?
माँ की अधरों पर
एक निश्छल मुस्कान उभरी ,
कहने लगीं -
वत्स ! माँ का आँचल तो
कब से मैला ही है ,
मैं बार - बार धोती हूँ ,
बार - बार साफ करती हूँ
और तुम हो कि
इसे बार - बार मैला कर देते हो ,
फिर पूछते भी हो !
अरे !
करोड़ों खर्च करो या अरबों ,
रुपयों से भला माँ का आँचल
कैसे साफ होगा
जब, हमारे पुत्रों का
मन ही मैला हो ?
यह आँचल धन से नहीं ,
मन और तन के श्रम से
साफ हो सकेगा .......
मेरे जीर्ण - शीर्ण जीवन पर
कौन ध्यान देता है ,
सभी अपने नाम की
डुगडुगी पिटवाते हैं ,
और ,
हमारे ही तट पर बैठ कर
सन्यासी बन जाते.हैं ।
जब व्यवस्था में ही दोष हो
और , मन में भी खोट हो ,
तो ,
एक मेरा ही दामन क्या
सभी का दमन मैला ही रहेगा ,
चाहे जितनी चन्दन घिसो ,
चाहे जितना तिलक लगाओ ।
अब कोई भगीरथ नहीं ,
जिसने जनकल्याण के लिए
वर्षों तपस्या कर
मुझे इस धरा पर लाया।
अब तो
सभी शाशक
और
सभी शोषक बने हैं ,
जनकल्याण की भावना
विलुप्त हो गई है
और लक्ष्य
स्वकल्याण और स्वसत्ता पर
केंद्रित हो गई है
और मैं !
मैली की मैली
रह गई हूँ ........
---- ( प्रकाशित )