Friday, December 29, 2017

गंगा मैली हो गई है ....

भोर की आहट भर थी ,
भोर नहीं हुई थी ,
मैंने माँ गंगे से पूछा  -
हे ! पतित पावनि ,
पापहारिणी ,
माँ गंगे !
शीतल , निर्मल
स्वच्छ धाराओं संग ,
छल - छल, कल - कल  कर
बहती रहती हो अनवरत , अबाध ,
कभी भगीरथ की प्रार्थना से
द्रवित हो ,
तुम धरती का उद्धार करने
अवतरित हो  ,
मौज में बहने लगीं ,
पर , अब सभी कहते हैं  , कि
गंगा मैली हो गई है  ......
और ,
इस मैली गंगा के आँचल की सफाई
वर्षों से हो रही है ,
करोड़ों खर्च हुए ,
करोड़ों खर्च हो रहे हैं ,
करोड़ों खर्च होंगे
पर , तुम्हारा आँचल
मैला का मैला ही रहा  ,
ऐसा क्यूँ  ?
माँ की अधरों पर
एक निश्छल मुस्कान उभरी ,
कहने लगीं  -
वत्स ! माँ का आँचल तो
कब से मैला ही है ,
मैं बार - बार धोती हूँ ,
बार - बार साफ करती हूँ
और तुम हो कि
इसे बार - बार मैला कर देते हो  ,
फिर पूछते भी हो !

अरे !
करोड़ों खर्च करो या अरबों  ,
रुपयों से भला माँ का आँचल
कैसे साफ होगा
जब, हमारे पुत्रों का
मन ही मैला हो   ?
यह आँचल धन से नहीं ,
मन और तन के श्रम से
साफ हो सकेगा  .......
मेरे जीर्ण - शीर्ण जीवन पर
कौन ध्यान देता है ,
सभी अपने नाम की
डुगडुगी पिटवाते हैं  ,
और ,
हमारे ही तट पर बैठ कर
सन्यासी बन जाते.हैं  ।

जब व्यवस्था में ही दोष हो
और , मन में भी खोट  हो  ,
तो ,
एक मेरा ही दामन क्या
सभी का दमन मैला ही रहेगा ,
चाहे जितनी चन्दन घिसो ,
चाहे जितना तिलक लगाओ ।
अब कोई भगीरथ नहीं ,
जिसने जनकल्याण के लिए
वर्षों तपस्या कर
मुझे इस धरा पर लाया।
अब तो
सभी शाशक
और
सभी शोषक बने हैं ,
जनकल्याण की भावना
विलुप्त हो गई है
और लक्ष्य
स्वकल्याण और स्वसत्ता पर
केंद्रित हो गई है
और मैं !
मैली की मैली
रह गई हूँ   ........
 
       ---- ( प्रकाशित )

Monday, December 18, 2017

अभिनन्दन

नूतन नवल बरस अभिनन्दन ,
तुमसे नई - नई आशायें ,
निष्कंटक हो पंथ हमारा ,
जीवन पथ पर बढ़ते जायें ।

फूलों सा जीवन यह महके ,
जग को भी महकाते जायें  ,
मन में हो सद्भाव सभी के ,
बैर भाव मन में ना आयें ।

अभ्युदय हो सकल विश्व का ,
मधुर सरस रस को बरसायें ,
प्यार के फूल खिले हर दिल ,
जग को अपना मीत बनायें ।

नित - नित नव सोपान चढ़ें हम ,
नित - नित , नव , नव संरचना हो ,
मानवता हो ध्येय हमारा ,
चहुँ विकास का लक्ष्य बनायें ।

चन्दन सम धरती की माटी ,
माथे इसका तिलक लगायें  ,
इस नव वर्ष करें कुछ ऐसा ,
जीवन कुसुमित सा मह्कायें ।

Sunday, December 17, 2017

राम राज्य

राम राज्य  ?
कौन राम  ?
कैसा राज्य  ?
त्रेता से लेकर
कलयुग तक
राम भटकते ही रहे हैं 
जीवन भर  ........
कभी कर्तव्य  ,  कभी धर्म  ,
कभी राजनीति के
चक्र्व्यूह में फँस कर
सन्यासी जीवन ही
जीते रहे हैं ,
कभी मर्यादाओं में बाँधा ,
कभी सीमाओं में ,
न उनको राज्य ही मिला ,
ना ही ,  अपना धाम ही ।
कभी म्यूजियम में आश्रय मिला ,
कभी टेंट में रखा ,
तो ,
कभी   " सरयू " के तट पर
बहलाने को
हजारों प्रज्वलित दीपों से
स्वागत किया  ,
' अतिथि देवो भव ' !
वस्तुत: , हम राम को
छलते ही तो रहे हैं  ,
और ,
राम ! भोले राम
छले जाते रहे ,
छले जाने पर भी
मुस्कुराते ही रहे  ....... .
वह नियति के नियंता ,
मानव के इस कौतिक क्रीड़ा को
देखते हैं , समझते हैं
और ,
मुस्कुरा भर देते हैं ,
वह जानते हैं  -
यह विश्व - यह जगत
विष - कुंभ है ,
सभी इस विष - कुंभ के विष को
पी रहे हैं ,
कुछ कम , कुछ ज्यादा ,
सभी आनंदमग्न हैं
अपने आपको  छलते हुए   !
सत्य से
सभी को डर लगता है
इसलिए , अपने मन के अन्दर
वे नहीं झांकते हैं ,
कहीं वहाँ से गिर न पड़ें  ........
हा राम !
तुमने ताड़का को मारा ,
मारीच को मारा ,
बाहू - सुबाहू ,मेघनाद को मारा ,
रावण को भी मार गिराया ,
पर अपने ही निर्मित मानव के
मन के अन्दर छिपे बैठे
स्वार्थ और दुर्भावनाओं के दानव को
नहीं मार सके ,
भले तुम्हे अपने सिंहासन पर
विराजित नहीं  किया जा सका है
परन्तु , आदि से अनादि तक
सत्ता पूजित और पोषित
होती रही है , होती रहेगी ,
और , तुम यूँ ही
कभी यहाँ  , कभी वहाँ
भटकते ही रहोगे ,
आखिर एक माँ का श्राप भी तो तुम्हे  है  ,
" श्रवण कुमार " की आत्मा
अब भी भटक रही है ,
भटक रही है , भटक रही है  .........
(  यह कविता मैंने 9 दिसम्बर 2017 को लिखी  )
        ---- ( प्रकाशित )

Sunday, September 3, 2017

चाहत हमारी है

खिलेंगे फूल  खुशियों के , मगर तब हम नहीं होंगे ,
ज़माना मुस्कुराएगा  , मगर तब हम नहीं होंगे ,
मिले जन्नत , रहो आबाद , दुआ है तुमको ये मेरी ,
भले आँखों में है आँसू , जुवां पर है दुआ मेरी।

रहो जिस ठौर भी तुम सब , रहे सूरज की किरणें भी,
उजाले ही उजाले हों सदा , चाहत हमारी है  ,
नहीं गम हो कभी कोई , भरा खुशियों से दामन हो ,
तुम्हारे हिस्से के काँटे , ख़ुदा से माँग  मैं  लूँगा।

Friday, August 4, 2017

कोयल बोल रहा है

बादल ने तंबू गाड़े ,
आये  बरखा के दिन  ,
बारिस की बूंदों ने गया ,
रिम -झिम ता -ता धिन। 
पपीहा बोल रहा है ,
 पपीहा  बोल रहा है।

भींगी हवा हुई मस्तानी ,
मन है डाँबा - डोल ,
गोरी के नैना हैं देखो ,
खोल रहे हैं पोल।
 पपीहा बोल रहा है ,
 पपीहा बोल रहा है।

छमक - छमक कर बुलबुल चलती ,
घायल मातादीन ,
मौसम का आनन्द ले रहे ,
चाचा नसरुद्दीन ,
 पपीहा बोल रहा है
 पपीहा बोल रहा है।
( नोट : - रचना तिथि   25 . 07 . 2017  )








































































Friday, June 16, 2017

एक और महाभारत

मैं वक़्त हूँ  ,
मैं देखरहा हूँ ,,
चारों ओर लूट -खसोट हो रहा है ,
जिसे देखो , वही लूट रहा है ,
वही लुटेरा है ,
अमीर , और , अमीर  हो रहे हैं ,
गरीब  , और , गरीब हो रहे हैं ,
विद्वत जनों का अपमान हो रहा है ,
खल  पूजे जा रहे हैं ,
स्त्रियों की अस्मिता  ,
लूटी जा रही है  ,
मनुष्यता लुप्त हो रही है ,
क्रूरता अट्टहास कर रही है ,
पशुतापन बढ़ रहा  है  ,
दानवता पैर पसार रही है ,
हर गली - मोहल्ले  , चौराहों पर ,
रोज ही ,
द्रौपदी , निर्वसन  की जा रही है  ,
लोग मौन हैं  ,
युद्धिष्ठिर , अर्जुन ,भीम ,
नकुल और सहदेव  ,
तमाशाईयों की भीड़ में खड़े है  ,
दंभित प्रण कर  ," भीष्म पितामह  " ,
कौरवों की सेना से घिरे   ,
बार -बार
अपने धनुष पर  ,
प्रत्यंचा चढ़ा कर ,
अपनी  आत्मतुष्टि के लिए ,
टंकार दे रहे हैं  ,
एक और महाभारत की ,
जमीन तैयार हो रही है   .........

                      -------    ( प्रकाशित )

        

Tuesday, May 30, 2017

बेटी का घर कौन सा होता ?

बेटी ने पापा से पूछा ,
मुझको यह बतलाओ पापा
पर धन बेटी है कहलाती  ,
छोड़ मायके पिऊ घर आती ,
मिलता प्यार बहुत है पिऊ घर ,
फिर भी, पर जाया  कहलाती ।
दोनों घर के बीच डोलती ,
जीवन है उसका खो जाता ,
ऐसे में बतलाओ पापा ,
बेटी का घर कौन सा होता  ?

बेटी का यह प्रश्न जटिल था ,
मानो जैसे यही गरल था ,
इस विष को तो पीना ही था ,
बेटी को बतलाना ही था।
हो गंभीर पिता यूँ बोले ,
थोड़ा सा मन से वे डोले ,
पापा की आँखों का तारा ,
दिल का टुकड़ा होती बेटी ,
अपनी माँ की बहुत चहेती ,
माँ के दिल में रहती बेटी।

घर ना होता कोई बेटी ,
घर तो हमें बनाना पड़ता ,
प्यार , त्याग , विश्वास , समर्पण,
सौम्य ,शील ,सौहाद्र आचरण ,
सम्मानित होते जँह गुरुजन ,
जिस घर में होता है बेटी , 
रहते देव, फ़रिश्ते जिस घर ,
वह घर मंदिर सा बन जाता ,
जो घर मंदिर सा  बन जाता ,
बस वह मंदिर  घर कहलाता।

Sunday, May 28, 2017

वो बचपन की यादें

वो बचपन की यादें , वो बचपन की बातें ,
मेरे दिल में चुभती , वो किस्सों की  रातें ।
 कभी तो लिपटना  , कभी काँधे चढ़ना ,
बहुत याद आती , शरारत की बातें ।
नहीं भूली हूँ मैं , वो , दादी की बातें  ,
वो बचपन की यादें , वो बचपन की बातें ।   
लोरी सुना कर मुझको रिझाना ,
दे कर के थपकी मुझको सुलाना ,
सपनों के परियों के किस्से सुनाना ,
कभी बादलों की , कभी पँछियों की ,
बहुत सारे किस्से उनका सुनाना। 
ऊँगली पकड़ मेरा , मुझको घुमाना ,
पल-पल मेरी बलैयां ले लेना ,
बुरी नजरों से भी , मुझको बचाना ,
जरा मेरे रोते , सीने से लगाना ,
सीने से लगा कर , मुझे प्यार करना ,
ढेरों खिलौने दे कर बहलाना ,
वो दादी का प्यारा सा सुन्दर सा मुखड़ा ,
बहुत याद आती , बहुत याद आती ,
बहुत याद आती है  दादी की बातें।

Sunday, May 14, 2017

माँ

माँ ,
कैसे कह दूँ कि तुम नहीं हो !
तुम हो ,
जब तक एक मेरी साँसे हैं ,
जब तक दिल में धड़कन है ,
जब तक मेरी रगों में दौड़ता
तेरा लहू है ,
हाँ माँ , हाँ ,
तुम हो , तुम हो , तुम हो  ....... 

Friday, May 12, 2017

गर्जना

चीर रहा सन्नाटे को है ,सागर का गर्जन  ,
भेद तिमिर को रवि क्यों करता  आज रुदन - क्रन्दन   ,
हुई रश्मियाँ मंद , आज , ना हुआ कोई भी वंदन ।

हा ! कैसा अन्याय शत्रु का भारत की धरती पर ,
करके कलम शीश , लाल का , क्षत - विक्षत कर तन को ,
दे रहा चुनौती वर्षों से , वह , भारत के जन - जन को ।

जिसके लाखों सैनिक ने थे , घुटने टेक दिये  ,
वही भीरू - कायर फिर से , है आँखें दिखा रहा ,
गीदर को देखो , बिल्ली की बोली बोल रहा ।

पर  भारत के भाग्य - विधाता , अपने में खोये हैं ,
जाने किन सपनों को ले , आँख मींच  सोये हैं ,
मैं - मैं , तू - तू , तू - तू , मैं -मैं ,  इनमें ही उलझे हैं ।

आज ह्रदय में जन - जन के , जलती बदले की ज्वाला ,
मौन हुई है हवा , हुई स्तब्ध दसों  दिशाएँ ,
नेता की आँखों का पानी , सूख गए हैं लाला ।

होती गर परवा इनको , तो , काश्मीर क्यों जलता ,
क्यों कर राष्ट्र तिरंगे का , अपमान यहाँ पर होता ,
क्यूँ सड़कों पर काश्मीर के , राष्ट्र तिरंगा जलता  ?

कभी राम मन्दिर  में उलझे , कभी कृष्ण मन्दिर  में ,
गंगा की  पावन धारा में   ,  हाथ अपने धो आये ,
पर अपने मन - मन्दिर को , वे साफ़ नहीं कर पाए ।

गर ऐसा होता तो , क्यों , क्रूरता परोसी जाती  ,
गौ रक्षा  व धर्म नाम पर , हत्याएँ क्यों होती  ,
क्यों केसर की क्यारी में , बारूद उगाई जाती  ?

क्यूँ सरहद पर रोज - रोज  , सैनिक शहीद हैं होते  ,
माँ का लाल , बहन का भाई , रोज बिछड़ क्यों जाते
क्यूँ सीमा पर प्रहरी के , सिर को काटे जाते  ?

कब तक होगी पत्थरबाजी ,
कब तक होंगे नारे ,
धर्म - प्यार  की बात  न  सुनते ,मानवता के हत्यारे।

लफ़्जों को छोड़ो , करो अब बारूदों से बातें ,
उनको तो अब उनकी ही , भाषा में समझायें   ,
अरे ! करो आदेश कूच का ,कहर शत्रु पर ढायें ।

हो चाहे बलिदान हमारा , आगे बढ़ते जाएँ ,
भारत माँ की चरणों में ,शत्रु के शीश चढ़ायें  ,
आन तिरंगे की रखनी है , चाहे जान ये जाए
नभ के कोने  - कोने में , हम राष्ट्र - ध्वजा फहराएं ।


Thursday, April 13, 2017

चिड़िया तुम अच्छा गाती हो

चिड़िया तुम अच्छा  गाती हो ,
अपने मीठे मधुर स्वरों से ,
सब का मन  हर्षा जाती हो,
चिड़िया तुम अच्छा गाती हो।

कितने सुन्दर पंख तुम्हारे ,
रंग - बिरंगे प्यारे - प्यारे ,
इन पंखों के  बल पर ही तुम ,
देश - विदेश घूमा  करती  हो ,
चिड़िया तुम अच्छा गाती  हो।

मनमोहक हैं चोंच चुटीले  ,
छोटे - मोटे और नुकीले ,
कीट - पतंगा , फल खाती हो  ,
नीड़ के लिये तिनका लाती हो,
चिड़िया तुम अच्छा गाती हो।

सूरज ढलते सो जाती हो ,
पौ फटते ही जग जाती हो ,
आँधी , तूफां और  बारिस से ,
कभी नहीं  तुम घबराती हो ,
चिड़िया तुम अच्छा गाती हो।

तिनका , तिनका जोड़ - जोड़ कर,
अपना नीड़ बना लेती हो ,
समय पर सोना ,समय पर जगना ,
हम सब को तुम सिखलाती हो ,
चिड़िया तुम अच्छा गाती हो।
            ---------- रचनाकार :- मंजु  सिन्हा

( नोट : - प्रकाशित )

Wednesday, April 5, 2017

Friday, March 31, 2017

नन्हकू

हमने भी देखा एक सपना ,
किससे कहूँ सपनों की बात ,
नन्हकू किसान की मेहरिया
सोचती है ,
सोचती  है -
अबकी नन्हकू आवेगा
तो , उससे कहेगी
मेरे लिए भी ले आना
शहर से
एक ठो  ' बिन्दी '
और
एक ठो  ' सिन्दूर की डिब्बी ' ,
बच्चों के लिए
एक सस्ता जूता ,
एक स्कूल बैग ,
कुछ किताबें , कुछ कापियां
और पेन्सिल भी ,
अबके फसल
कुछ ठीक लगी है  .....

नन्हकू शहर से
लौट आया है  ,
खाली हाथ ,
हताश !
क्या हुआ  ?
नन्हकू की मेहरिया ने पूछा  ,
नन्हकू कुछ नहीं बोला ,
बैठा रहा ,  गुम - सुम , उदास  ...
नन्हकू के मन में भी
उठती रही , उसके
मन की बात  -
मंडी के ठेकेदारों  ने
औने - पौने में
आलू खरीद लिया ,
पैसे भी पूरे नहीं दिये ,
बीज के पूरे दाम भी
नहीं निकले ,
कहाँ से लाऊँ
बच्चों के लिए जूते ,
किताबें ,
और  उसके लिए
' बिन्दी ' ?
साहूकार ने बीज के पैसे
मंडी में ही रखबा लिए ,
फिर वही
साल भर का फाका - कसी ,
फिर साल भर का
इन्तजार ,
फिर उधार ,
फिर कर्ज  ,
कब आयेंगे
मेरे अच्छे दिन  ?

'  सिलिंडर की ' कौन कहे ,
खाने - पीने से लेकर
डीज़ल - पेट्रोल  ,
हर चीजों के दामों में
उन्नति हो रही है ,
बस किसान मर रहे हैं,
' वादों ' के पिटारों से
' वादों ' के फूल
अब भी झड़ रहे हैं ।
फूल तो फूल हैं ,
चाहे वे कागज के हों
या फिर ,
असल ही,
सभी एक दिन मुरझा जाते हैं  .....

नन्हकू ने देखा
रात का स्याह अँधेरा ,
पर , सुबह का उजाला
नहीं देख सका ,
भोर के पंछी
चह - चहा रहे थे
पर नन्हकू का  ' पंछी  '
अँधेरे में ही गुम हो गया  ........

( रचना तिथि - 29 - 03  - 2017  समय - सुबह  एक  1 बज कर 30 मिनट  )
                   ---- ( प्रकाशित )

Saturday, March 11, 2017

घर - घर का चूहा

मैं , घर - घर का
चूहा कहलाता ,
पर , घर में अब ,
ना घुसने पाता ,
ना ही कपड़े  
कुतर हूँ पाता ,
ना ही रसोई घर में ही
भोजन मैं हूँ कर पाता।

घर - मकान सब  पक्के हो गए ,
बंद हो गईं नालियाँ सारी ,
रोशनदान भी बंद हो गए ,
दरवाजों में लग गई जाली।

रहा न घर में रास्ता कोई ,
जिससे मैं घुस पाता भाई ,
हो गया हाल हमारा खस्ता ,
हमने तब , नापा रास्ता।

है रेलवे स्टेशन ही अब
मेरा स्थाई अड्डा ,
मेरा बसेरा
रेल का डब्बा ,
इसमें खूब
सफर मैं करता ,
बिना टिकट मैं
आता - जाता।

तरह - तरह की
भाषा सुनता ,
तरह - तरह का
भोजन करता ,
छुप कर सभी को
देखा करता ,
घाट  - घाट का
पानी पीता।
एक जगह मैं
कभी ना टिकता ,
यायावर सा
जीवन जीता।

             ---- मंजु सिन्हा

Monday, January 30, 2017

ओ परदेशी ,घर तू आ जा

रोटी तो बस दो खाते हैं ,
पानी भी थोड़ा पीते हैं ,
रोटी मुझको नहीं चाहिये ,
मुझको तो बस प्यार चाहिये ,
वापस तू अब घर को आ जा ,
आधी ही है मेरी पूजा ,
पूजा पूरी करने आ जा ,
ओ परदेशी ,घर तू आ जा।

बाट तिहारा जोह रहा हूँ ,
हर क्षण , हर पल विकल रहा हूँ ,
अँखियों में भी नीर नहीं है ,
मन को भी अब धीर नहीं है ,
 मेरे दिल के अरमां आ जा ,
नयनों का तारा तू आ जा ,
कुछ सम्बल मुझको तू दे जा ,
ओ परदेशी घर  तू आ जा।

(  रचना तिथि 30  मार्च -2015  )

Sunday, January 29, 2017

प्रकाशित रचनाएँ ( मंजु सिन्हा )

प्रकाशित रचनाएँ  ( मंजु सिन्हा )

1 . माँ तुम क्यों चली गईं  ?        कविता     कायस्थ प्रहरी     माo पत्रिका     मई       2015    आगरा
2 . तब और अब                             "             हलन्त                   "             अगस्त      "      देहरादून
3 . माँ का जाना                              "                 "                       "           अक्टूबर     "            "
4 . जिस देश में गंगा                       "                 "                        "          जनवरी    2016         "
5 . विडंबना                                    "                  "                       "             फरवरी       "          "
6 . माँ                                            "                  "                       "         अप्रैल - मई     "         "
7 . आईसक्रीम वाला                       "                  "                        "           जुलाई          "         "
8 . अकेली माँ                                 "                  "                        "           अगस्त        "         "
9 . बड़ों का सम्मान                        "                  "                         "         सितम्बर         "

Friday, January 27, 2017

प्रकाशित रचनाएँ : -

प्रकाशित रचनाएँ  : -

1 .   वीर प्रहरी  ( कविता )                 -     मुंगेर टाइम्स    -    सo  पत्र           नवंबर   / 1965   ( मुंगेर )
2 .   कभी न होगा मेरा अंत  ( लेख )  -    दमामा                   सo  पत्र         जनवरी / 1976    ( देहरादून )
3 .   यह गाँधी का देश  ( कविता  )    -  रेल राजभाषा         रेल पत्रिका     फरवरी 1994       ( रेलवे बोर्ड ,
                                                                                                                                   नई दिल्ली )
4 . मंजिल को पाने तू चल ( कविता  )  -  वैनगार्ड                  सo पत्र          15 -01 - 2006      ( देहरादून )
5 . लड़कियां   ( कविता  )                   -       "                           "               03 - 02 -2006             "
6 .  वज़ूद  ( कविता  )                        -     पेज -3                       "               26 -02 -2006              "

7 . किसने खेली होली ( कविता )        -         "                               "               13 -03 -2006            "
8 . आरक्षण पर राजनीति ( लेख ) -             "                               "              04 - 05 - 2006           "
9 . आत्मदाह  ( कविता )              -             "                               "               28 - 05 - 2006           "
10 . खामोश  ( कविता  )              -       वैनगार्ड                            "               04 -06 -2006             "
11 . फिर इस महगाई ने मारा ( लेख )    अमर उजाला                   "                05 -06 -2006             "
                                                           (  कॉम्पैक्ट )
12 .  सड़क   ( कविता  )            -           वैनगार्ड                           "                09 - 07 -2006            "
13 . पल - पल , छिन - छिन ( कविता  )     "                                 "                23 -07 - 2006           "
14 . परचम हमको लहराना है    "              "                                  "                19 - 08 - 2007          "
15 . गाँधी को किसने है मारा ( कविता )  पेज - 3                           "                  31 - 01 -2008          "
16 . कैसे खायें दाल -रोटी    ( लेख  )    अमर उजाला कॉम्पैक्ट       "                   01 - 04 -2008          "
17 . माधो मेरी जात न पूछो ( कविता ) - पेज - 3                           "                    20 - 06 - 2010        "
18 . मैं नेता हूँ                     ( कविता )      "                                  "                    25 - 06 - 2010        "
19 . मंहगाई , जनता और
       सरकार                        (  लेख )          "                                  "                    10 - 07 - 2010       "
20 . बरगद का पेड़              ( कविता )        "                                  "                     11 -07 -2010        "
21 . आखिर क्यों होते हैं
        ट्रेन हादसे                   ( लेख )            "                                   "                    24 - 07 - 2010       "
22 . बेटियां                        ( कविता ) - उत्तराखण्ड भारती    वार्षिक पत्रिका           2010  ( अक्टूबर  )  "
                                                       ( राजस्व विभाग , देहरादून )
23 घोटालों एवं भ्रष्टाचार     ( लेख )          पेज - 3                   सo पत्र                    19 - 03 - 2011         "
      का विष                                                                                                                                          
24 . माँ                           ( कविता )          पेज - 3                  सo पत्र                   05 - 04 - 2011        "
25 . अब भी चेत जाओ            "        -  युगवाणी                ( माo  पत्रिका )             सितंबर -2013        "
26 . आँखों में है ये कैसी नमी ( कहानी ) - फैमिली                         "                        फरवरी - 2014        "
             ( वैलेनटाइन डे स्पेशल )
27 . मोहे रंग दे ( होली पर विशेष ) लेख       "                                                       मार्च - 2014            "
28 . मुझको गुब्बारे दिलवा दो   ( कविता )   युगवाणी                    "                  दिसम्बर - 2014          "
29 . कोयल क्यों काली हुई              "        कायस्थ प्रहरी               "             जनवरी - 2015        आगरा
30 . माँ सा न कोई मिला                 "               "                             "            फरवरी - 2015            "
31 . पर्यावरण बचाना होगा       ( लेख )        हलन्त                        "         मार्च - 2015            देहरादून
32 . वसंत और होली                    "         कायस्थ प्रहरी                   "                "                      आगरा
33 . हमारी नैतिकता                    "             हलन्त                         "          अप्रैल - 2015         देहरादून
34 . अभ्यर्थना                      ( कविता )          "                              "            मई  - 2015               "
35 . आँखे                            ( कहानी  )     कायस्थ प्रहरी                "          जून - 2015         आगरा
36 . लौट आओ तुम             ( कविता )              "                           "                 "                      "
37 . नई गंगा निकलनी               "                हलन्त                       "      जुलाई - 2015  देहरादून
        चाहिए 
38  . अम्बियाँ                             "             कादम्बिनी                     "      अगस्त - 2015   दिल्ली
39 . हम और हमारे बुजुर्ग      ( लेख )         हलन्त                            "       "            "    देहरादून
40 . भालू                ( बाल कविता )       बाल प्रहरी                           "   जुलाई-सितंबर -15 अल्मोड़ा
41 . हिन्दी की बिन्दी         ( लेख )              हलन्त                          "         सितंबर -2015    देहरादून
       का सवाल
42 . ग़ज़ल                    ( ग़ज़ल )               परिन्दे                          "     नवo - दिसम्बर - 15  दिल्ली
43 . राजनीति और सेवा    ( लेख )              हलन्त                           "      अक्टूबर - 2015    देहरादून
44 . बहशियाना है बहुत   ( कविता )              "                                "         नवम्बर  - 2015          "
45 . एक कविता अनाम सी  ( कविता )          "                                "         दिसम्बर- 2015           "     
46 . नव क्रांति चाहिए   ( कविता )           हिन्दी सुरभि         स्मारिका  ( वर्ष 2014 - 15 )          हाथरस
                                                                                      (    बिलम्ब  प्राप्त )
47 .  मोमबत्त्ती और मैं  ( कविता )          ज्योति             पत्रिका - 2015 ( बिलम्ब से प्राप्त ) - हरिद्वार
48 . अभिनन्दन नव वर्ष  ( कविता )          हलन्त             माo पत्रिका          जनवरी -2016    - देहरादून
49 . रोटी का स्वाद                 "                       "                        "                 फरवरी -2016           "
50 .  कागजी आदमी              "                        "                        "                    "           "               "
51 . लो वसंत आ गया            "               प्राची क्षितिज               "                 मार्च         "        लखनऊ
52 . अभी बहुत है शेष              "                  हलन्त                      "           अप्रैल -मई     "        देहरादून
53 .जँगली आदमी                    "                     "                                              "             "              "
54 . श्रद्धांजलि                           "                     "                           "              जून - 2016                "
55 . पहाड़ का दर्द                       "                     "                           "             जुलाई    "                   "
56 . तिरंगा न झुकने देंगे            "                      "                           "            अगस्त     "                 "
57 . जय किसान                        "                      "                           "                   "        "                 "
58 . गुरुवै नम:  ( हिन्दी दिवस पर विशेष लेख )  "                             "          सितम्बर     "                 "
59 . खोया हुआ शहर देहरादून -   कविता              "                           "             अक्टूबर     "               "
60 . शीश को मैं वार दूँ                     "                   "                           "           नवम्बर       "               "
61 . मेरा गाँव                                  "                  "                            "          दिसम्बर       "              "
62 . आज भी                                 "              वागर्थ                          "      दिसम्बर 2016   -  कोलकाता
63 . मेरे आँगन पेड़ आम का           "               हलन्त                         "        जनवरी - 2017    देहरादून
64 . माँ शारदे  !                             "                   "                             "         फरवरी - 2017         "
65 . बरगद का पेड़                         "                    "                            "          मार्च    - 2017         "