Sunday, May 10, 2015

हाँ ,माँ ऐसी ही होती है

मैंने जब इस जग से पूछा ,
बतला , माँ कैसी होती है ?
वह बोला -सम्पूर्ण जगत को ,
वह तो , आलोकित करती है।
गंगा-जल सी वह  निर्मल है ,
बहुत मधुर वह ,बहुत सरल है;
पर, पर्वत सा दृढ़ होती है,
हाँ, माँ ऐसी ही होती है।

रोम-रोम से ममता जिसके ,
फूट रही झरना सी  बन कर ,
करती है वह प्यार ह्रदय से ,
अपनी सुख-सुविधा को ताज कर।

खुद काँटो पर सो जाती है ,
पर,संतति को सुख देती है।
वह त्याग की सच्ची मूरत है ,
हाँ ,माँ ऐसी ही होती है।

चाहे आगे हो काल खड़ा ,
सम्मुख उसके आ जाती है ,
कहती - वह तो है माँ सबकी ,
सीने पर गोली सह खाती है।
जीवन न्यौछावर कर जाती ,
वह,पीछे कभी नहीं हटती।
माँ वीर, साहसी होती है ,
हाँ ,माँ ऐसी ही होती है।




Thursday, May 7, 2015

गरमी आई

गरमी आई , गरमी आई ,
कितनी सारी चीजें लाई।
आम और लीची है लाई ,
तरबूज व खरबूजे लाई ।
शरबत लाई , रसना लाई ,
हम सब मिल कर पीते भाई।

गरमी आई , गरमी  आई ,
ठंढी - ठंढी  चीजें   लाई।
आइसक्रीम  व कुल्फी लाई ,
बर्फ का गोला भी है भाई।
ठंढा - ठंढा दूध , मलाई ,
मन को बहुत ही भाता भाई।

गरमी आई , गरमी  आई ,
साथ में छुट्टियाँ भी है लाई।
दिन भर घर में मौज मनाते ,
माँ के काम में हाथ बँटाते।
रंग - बिरंगे  चित्र  बनाते ,
घर को भी हैं खूब सजाते।

गरमी  आई , गरमी  आई ,
बहुत सुहानी शाम है  लाई ।
सुबह-शाम हम सैर को जाते ,
दोनों टाइम खूब नहाते।
अब पानी से डर नहीं लगता ,
पानी हमको अच्छा लगता।

( मंजु  सिन्हा द्वारा रचित  )






Sunday, May 3, 2015

आज तुम गाओ मंगल गान

हुआ प्रकृति में नया विहान ,
आज तुम गाओ मंगल गान।
सरसों फूली , बौर है महका ,
महुआ से है वन मदमाया।
हवा वसंती चली , कि, ऐसी ,
सुध-बुध भी मन का विसराया।
गीत भृंग , गाये  फूलों पर ,
लहरें मदमाती कूलों पर।
प्रकृति विहँसी , आया विहान ,
आज तुम गाओ मंगल गान।