Tuesday, May 30, 2017

बेटी का घर कौन सा होता ?

बेटी ने पापा से पूछा ,
मुझको यह बतलाओ पापा
पर धन बेटी है कहलाती  ,
छोड़ मायके पिऊ घर आती ,
मिलता प्यार बहुत है पिऊ घर ,
फिर भी, पर जाया  कहलाती ।
दोनों घर के बीच डोलती ,
जीवन है उसका खो जाता ,
ऐसे में बतलाओ पापा ,
बेटी का घर कौन सा होता  ?

बेटी का यह प्रश्न जटिल था ,
मानो जैसे यही गरल था ,
इस विष को तो पीना ही था ,
बेटी को बतलाना ही था।
हो गंभीर पिता यूँ बोले ,
थोड़ा सा मन से वे डोले ,
पापा की आँखों का तारा ,
दिल का टुकड़ा होती बेटी ,
अपनी माँ की बहुत चहेती ,
माँ के दिल में रहती बेटी।

घर ना होता कोई बेटी ,
घर तो हमें बनाना पड़ता ,
प्यार , त्याग , विश्वास , समर्पण,
सौम्य ,शील ,सौहाद्र आचरण ,
सम्मानित होते जँह गुरुजन ,
जिस घर में होता है बेटी , 
रहते देव, फ़रिश्ते जिस घर ,
वह घर मंदिर सा बन जाता ,
जो घर मंदिर सा  बन जाता ,
बस वह मंदिर  घर कहलाता।

Sunday, May 28, 2017

वो बचपन की यादें

वो बचपन की यादें , वो बचपन की बातें ,
मेरे दिल में चुभती , वो किस्सों की  रातें ।
 कभी तो लिपटना  , कभी काँधे चढ़ना ,
बहुत याद आती , शरारत की बातें ।
नहीं भूली हूँ मैं , वो , दादी की बातें  ,
वो बचपन की यादें , वो बचपन की बातें ।   
लोरी सुना कर मुझको रिझाना ,
दे कर के थपकी मुझको सुलाना ,
सपनों के परियों के किस्से सुनाना ,
कभी बादलों की , कभी पँछियों की ,
बहुत सारे किस्से उनका सुनाना। 
ऊँगली पकड़ मेरा , मुझको घुमाना ,
पल-पल मेरी बलैयां ले लेना ,
बुरी नजरों से भी , मुझको बचाना ,
जरा मेरे रोते , सीने से लगाना ,
सीने से लगा कर , मुझे प्यार करना ,
ढेरों खिलौने दे कर बहलाना ,
वो दादी का प्यारा सा सुन्दर सा मुखड़ा ,
बहुत याद आती , बहुत याद आती ,
बहुत याद आती है  दादी की बातें।

Sunday, May 14, 2017

माँ

माँ ,
कैसे कह दूँ कि तुम नहीं हो !
तुम हो ,
जब तक एक मेरी साँसे हैं ,
जब तक दिल में धड़कन है ,
जब तक मेरी रगों में दौड़ता
तेरा लहू है ,
हाँ माँ , हाँ ,
तुम हो , तुम हो , तुम हो  ....... 

Friday, May 12, 2017

गर्जना

चीर रहा सन्नाटे को है ,सागर का गर्जन  ,
भेद तिमिर को रवि क्यों करता  आज रुदन - क्रन्दन   ,
हुई रश्मियाँ मंद , आज , ना हुआ कोई भी वंदन ।

हा ! कैसा अन्याय शत्रु का भारत की धरती पर ,
करके कलम शीश , लाल का , क्षत - विक्षत कर तन को ,
दे रहा चुनौती वर्षों से , वह , भारत के जन - जन को ।

जिसके लाखों सैनिक ने थे , घुटने टेक दिये  ,
वही भीरू - कायर फिर से , है आँखें दिखा रहा ,
गीदर को देखो , बिल्ली की बोली बोल रहा ।

पर  भारत के भाग्य - विधाता , अपने में खोये हैं ,
जाने किन सपनों को ले , आँख मींच  सोये हैं ,
मैं - मैं , तू - तू , तू - तू , मैं -मैं ,  इनमें ही उलझे हैं ।

आज ह्रदय में जन - जन के , जलती बदले की ज्वाला ,
मौन हुई है हवा , हुई स्तब्ध दसों  दिशाएँ ,
नेता की आँखों का पानी , सूख गए हैं लाला ।

होती गर परवा इनको , तो , काश्मीर क्यों जलता ,
क्यों कर राष्ट्र तिरंगे का , अपमान यहाँ पर होता ,
क्यूँ सड़कों पर काश्मीर के , राष्ट्र तिरंगा जलता  ?

कभी राम मन्दिर  में उलझे , कभी कृष्ण मन्दिर  में ,
गंगा की  पावन धारा में   ,  हाथ अपने धो आये ,
पर अपने मन - मन्दिर को , वे साफ़ नहीं कर पाए ।

गर ऐसा होता तो , क्यों , क्रूरता परोसी जाती  ,
गौ रक्षा  व धर्म नाम पर , हत्याएँ क्यों होती  ,
क्यों केसर की क्यारी में , बारूद उगाई जाती  ?

क्यूँ सरहद पर रोज - रोज  , सैनिक शहीद हैं होते  ,
माँ का लाल , बहन का भाई , रोज बिछड़ क्यों जाते
क्यूँ सीमा पर प्रहरी के , सिर को काटे जाते  ?

कब तक होगी पत्थरबाजी ,
कब तक होंगे नारे ,
धर्म - प्यार  की बात  न  सुनते ,मानवता के हत्यारे।

लफ़्जों को छोड़ो , करो अब बारूदों से बातें ,
उनको तो अब उनकी ही , भाषा में समझायें   ,
अरे ! करो आदेश कूच का ,कहर शत्रु पर ढायें ।

हो चाहे बलिदान हमारा , आगे बढ़ते जाएँ ,
भारत माँ की चरणों में ,शत्रु के शीश चढ़ायें  ,
आन तिरंगे की रखनी है , चाहे जान ये जाए
नभ के कोने  - कोने में , हम राष्ट्र - ध्वजा फहराएं ।