Tuesday, October 28, 2014

इस धरा पर एक नई गंगा निकालनी चाहिए।



हो गई शापित धरा , परित्राण होना चाहिए  ,
इस धरा पर एक नई गंगा निकालनी चाहिए। 

हर त्रषित जन -जन का अब कल्याण होना चाहिए ,
रुष्ट शिव की ही कृपा फिर इस धरा पर चाहिए। 

पाप क्या है ,पुण्य क्या है ,मैं नहीं कुछ जानता ,
वक्त के  हाथों रहा हूँ, जिन्दगी भर नाचता।

जो सदा से ही रहा है , प्यार सबको बाँटता ,
आज फिर इस भोले शिव का, प्यार सबको चाहिए। 

इस धरा पर एक नई गंगा निकालनी चाहिए। 

हो गईं नदियाँ अपावन , भक्ष कर अभक्ष्य का ,
पतित-पावनी एक सलिला, हम को फिर से चाहिए।

अवतरित कर ला सके ,शिव की जटा से गंग जो ,
ऐसे भागीरथ का ,फिर ,अवतार  होना चाहिए।

त्राण सबका कर सके जो ,त्रास सबका हर सके ,
मोक्ष सबको दे सके जो , गंगा जल वो चाहिए।

कर सकूँ जो वक्त को ,वश में, वो शक्ति चाहिए ,
हे जटाधर मुझको तो, वरदान ऐसा चाहिए।

इस धरा पर एक नई गंगा निकालनी चाहिए। 
 


            --- ( प्रकाशित )