Sunday, January 19, 2014

कुछ गीत लिखे अपने मन की




निज करतल में मैं प्रकृति का श्रृंगार लिए चलता हूँ  ,
मैं अपने उर में जीवन  का उद्गार लिए चलता हूँ    ।

मैं पथिक अकेला अपनी राह का, मस्ती में चलता हूँ ,
मैं अरमानों और भावों का उपहार लिए चलता हूँ    ।

तूफ़ानों - झंझावातों को मुट्ठी बाँध  लिए चलता हूँ     ,
सुख - दुःख के दोनों तीरों को अपने साथ लिए चलता हूँ  ।

निविड़ अंधकार  में भी , पथ , आलोकित कर के चलता हूँ ,
साहस के बल, हर मुश्किल ,हँस कर पार किये चलता हूँ    ।

नहीं संग कोई संगी साथी ,मन को साथ लिए चलता हूँ  ,
मैं मौजों में भी हिम्मत का पतवार लिए चलता हूँ   ।

मिले राह में काँटे भी ,  मैं , उनको प्यार किये  चलता हूँ   ,
कुछ गीत लिखे अपने मन की , वह गीत गाये चलता हूँ   ।