मैंने जब इस जग से पूछा ,
बतला , माँ कैसी होती है ?
वह बोला -सम्पूर्ण जगत को ,
वह तो , आलोकित करती है।
गंगा-जल सी वह निर्मल है ,
बहुत मधुर वह ,बहुत सरल है;
पर, पर्वत सा दृढ़ होती है,
हाँ, माँ ऐसी ही होती है।
रोम-रोम से ममता जिसके ,
फूट रही झरना सी बन कर ,
करती है वह प्यार ह्रदय से ,
अपनी सुख-सुविधा को ताज कर।
खुद काँटो पर सो जाती है ,
पर,संतति को सुख देती है।
वह त्याग की सच्ची मूरत है ,
हाँ ,माँ ऐसी ही होती है।
चाहे आगे हो काल खड़ा ,
सम्मुख उसके आ जाती है ,
कहती - वह तो है माँ सबकी ,
सीने पर गोली सह खाती है।
जीवन न्यौछावर कर जाती ,
वह,पीछे कभी नहीं हटती।
माँ वीर, साहसी होती है ,
हाँ ,माँ ऐसी ही होती है।
बतला , माँ कैसी होती है ?
वह बोला -सम्पूर्ण जगत को ,
वह तो , आलोकित करती है।
गंगा-जल सी वह निर्मल है ,
बहुत मधुर वह ,बहुत सरल है;
पर, पर्वत सा दृढ़ होती है,
हाँ, माँ ऐसी ही होती है।
रोम-रोम से ममता जिसके ,
फूट रही झरना सी बन कर ,
करती है वह प्यार ह्रदय से ,
अपनी सुख-सुविधा को ताज कर।
खुद काँटो पर सो जाती है ,
पर,संतति को सुख देती है।
वह त्याग की सच्ची मूरत है ,
हाँ ,माँ ऐसी ही होती है।
चाहे आगे हो काल खड़ा ,
सम्मुख उसके आ जाती है ,
कहती - वह तो है माँ सबकी ,
सीने पर गोली सह खाती है।
जीवन न्यौछावर कर जाती ,
वह,पीछे कभी नहीं हटती।
माँ वीर, साहसी होती है ,
हाँ ,माँ ऐसी ही होती है।