Friday, February 3, 2012

आया वसंत का मधु मौसम

                                                                                                    











कलियाँ  चटकीं कचनार खिले ,
गुलमोहर के मुख लाल हुए ,
चहकीं चिड़ियाँ बहका  पवन
मदमस्त हुआ तन-मन योवन ।                   

फूलीं सरसों महका बयार ,
हो रहा धरा का नव श्रृंगार  ,
उन्मद समीर गाता मल्हार ,
चल नाविक तू चल मझधार ।

नदियों की चंचल लहर -लोल , 
प्रमुदित हो करती हैं   किलोल ,
कुंजों में कोकिल का सरगम , 
है पात -पात बिखरा शबनम ,

सुन कर भौरों का गुन-गुन -गुन , 
फूलों पर छाया है   फागुन  , 
इतरा -इतरा कर शाखों   पर ,
कर रहे भ्रमर का  आलिंगन  । 

सूरज की रक्तिम किरणों से , 
सरसिज सरवर का महक उठा ,
गिरी भी बुरांस के   फूलों  से ,
दावानल जैसा  दहक   उठा । 

अनुपम है यह रूप धरा   का , 
अंग -अंग है   निखर    रहा , 
कामदेव के  पुष्पवान    से , 
संयम मन का बिखर  रहा

मधु -ऋतु के अंगड़ाई    से ,
भींग रहा  है  अंतरतम  , 
आया वसंत का मधु -मौसम ,
आया वसंत का मधु -मौसम ।