Wednesday, September 17, 2014

माँ सा न कोई मिला

आँख खुली तो माँ को देखा , मुझको ईश मिला ,
ढूंढ़ा जग के कोने-कोने , माँ सा न कोई मिला।

माँ पर्वत है ,माँ ही धरनी , क्षीर का सागर माँ ,
जग यह तपता मरुस्थल है ,शीतल जल है माँ।

गोद में जिसके स्वर्ग बसा है , वह मूरत है माँ ,
चरणों में जिसके तीरथ है ,वह सूरत है माँ।

आँचल में आकाश समाया , है देवी सी माँ ,
सब गुरुओं में जो गुरुतर है ,वह है केवल माँ। 

कविता कहना ,ग़ज़ल सुनाना
















कविता कहना ,ग़ज़ल सुनाना ,
ये तो एक बहाना है ,
सच्ची-सच्ची बात है यारों ,
मिलना और मिलाना  है।

जीवन नीरस हो जाए न ,
हँसना और हँसाना है ,
दो दिन की इस बस्ती में ,
सब का एक फ़साना है।

नहीं महत्तर , नहीं लघुतर ,
भेद यहाँ नहीं माना है ,
मस्ती सब की एक यहाँ है ,
सब का एक तराना है।

चिड़ियों सा है मिल कर रहना ,
चिड़ियों सा ही गाना है ,
हमने तो बस गीत-ग़ज़ल में ,
ईश्वर को पहचाना है।