रे वसंत ! तुम ऐसे आना आना ,
हर घर - आँगन फूल खिलें ,
आम्र - कुञ्ज कोयलिया कुहके ,
वन -उपवन भी खूब खिलें ।
शीतल शीतल मंद बयार बहे नित ,
खग - खञ्जन उन्मुक्त उड़ें ,
पपिहा टेर लगाए , वन - वन ,
टेसू - बुराँस हर ओर खिलें।
सुरभित हो गमके दिग - दिगंत ,
चहके - बहके मरुत चले ,
भ्रमर करे गुँजन कलियों पर ,
हर दिल में नव प्यार पलें।
शुष्क ह्रदय के आँगन में भी ,
मानवता के फूल खिलें ,
भूल गये जो मानवता को ,
उनके दिल नवजोत जले।
छोटा सा है जीवन अपना ,
फिर पतझर आ जाना है ,
कटुता छोड़ें , नफ़रत भूलें ,
आओ हम सब गले मिलें।