Tuesday, May 19, 2020

त्रासदी

किसी मजदूर ने ही बनाये होंगे
रेल के डिब्बे ,
रेल के इंजन ,                                               
रेल की पटरियां ,
लेकिन कितनी त्रासदी है  ( कि  )
यह उन्हें नसीब  नहीं ,
( उल्टे ,रौंदती चली जाती है  )
कर देती है क्षत -विक्षत उनके शरीर ,
शरीर के साथ मन ,
छीन लेती है
उनकी पोटली में बंधी रोटियां
और                                                        
छितरा देती है पटरियों पर ।
नहीं , वह भूख से नहीं मरा ,
ना ही वह पैदल चलने से मरा ,
वह तो अपनी मौत मर गया है ,
आँसू न बहायें ,
कीमती है ,
मजदूरों का क्या !
ये तो यूँ ही मर - खप जाते हैं ,
मजदूर ही तो हैं ,
कोई  ......... ,
( लाट साहब तो नहीं )
वैसे , आँसुओं का क्या है ,
सुना है ,
घड़ियाल भी बहाते हैं
आठ - आठ आँसू    .... .....
रचना तिथि : -  09 -05 -2020