Friday, August 31, 2018

सब कुछ सत्य तो नहीं

कितना अच्छा लगता है
अपने नाम के आगे
एक  '  विशेषण  ' का लग जाना ,
एक विशेष  ' वर्ग '  से
पुरस्कृत हो जाना ,
कितना सुन्दर  और स्वर्णिम है
वह शब्द और संबोधन  !
जब इतने बड़े सम्मान से
हमें नवाज़ा जाता है ,
' ख़ैरात 'में जब
इतना सब कुछ मिल जाता है ,
' श्रम 'का झमेला क्यों पालें  ?
क्यों पसीना  बहायें  ?
कादो  - कीचड़ में क्यों सनें  ?
जब हमें
एक मेहमान की तरह
मिल जाता है
सारा आदर -  सत्कार ,
मुफ़्त का दाना - खाना ,
और , ' वज़ीफा '
फिर क्यों ढोयें हम
व्यर्थ का पुस्तक का भार  ?
" समान अधिकार "  का नारा
संविधान की किताबों में है ,
धरातल पर नहीं ,
किताबों में तो बहुत कुछ लिखा है ,
पर सब कुछ सत्य तो नहीं   ,
यही सत्य है ।

Monday, August 20, 2018

टिहरी झील

शहरों में तो बहुत  धूल है ,
शोर - शराबा भी बहुत है।
आह ! उमस भी इतनी  , कि ,
बुद्धि काम नहीं करती है ,
तन शिथिल हो जाता है ,
मन हार जाता है ,
चलो , कहीं और चलो ,
काम बहुत करना है ,
प्रदेश को संभालना है ,
नीतियां बनानी है ,
बिना  नीति विकास बेमानी है।
नहीं - नहीं ,
शहरों में मुश्किल है ,
दूर पहाड़ों पर
मिल सकता कोई हल है ,
विकास का रास्ता ,शायद ,
टिहरी झील की ओर से जाता है।
चलो , वहीँ चला जाए ,
प्रकृति की गोद का
आनन्द लिया जाए ,
सुरम्य पहाड़ियों के बीच
झील के पानी की सतह पर ,
बहती ठंढ़ी - ठंढ़ी नरम हवा ,
भर देगी , मस्तिष्क में ताजगी ,
निश्चय , विकास की योजना ,
जायगी निखर - संवर  -
ऐसे ही वातावरण में
देवत्व प्राप्त होता है ,
सच कहते हो  -
विकास का रास्ता  , शायद,
टिहरी झील से हो कर जाता है।

Sunday, August 19, 2018

श्रद्धांजलि

चमका नभमें एक सितारा ,
 वह था प्यारा  ' अटल ' हमारा।
फूलों ने उसको महकाया ,
धरती ने उसको था सँवारा।
पूरब - पश्चिम , उत्तर - दक्खिन ,
सब  का ही वह तो था दुलारा।
टूट गया नभ का वह तारा ,
शोक में डूबा जग यह सारा।
मौन हुई हैं सभी  दिशायें ,
खो गया  भारत का उजियारा।
है नमन तुम्हे हे महापुञ्ज ,
अमर नाम जग में है तुम्हारा।
दो फूल चरणों  में अर्पित है ,
स्वीकार करो श्रद्धांजलि हमारा।

Wednesday, August 8, 2018

काश ! कि ऐसा हो जाता

काश ! कि  ऐसा हो जाता ,
इन्सां  , इन्सां हो जाता ।
जाति , धर्म सब झूठे हैं ,
काश समझ में आ जाता ।
जनम सभी का एक सा ,
मरण एक सा  ही होता।
सूरज , चन्दा  , तारे भी
एक सा ही सब को दिखता ।
सागर , नदिया का पानी ,
एक सा ही सब को मिलता ।
फूल हों या फिर काँटे हों ,
पवन एक सा ही मिलता ।
मानव फिर मानव से ही  ,
नफरत दिल में क्यों रखता  ?