काश ! कि ऐसा हो जाता ,
इन्सां , इन्सां हो जाता ।
जाति , धर्म सब झूठे हैं ,
काश समझ में आ जाता ।
जनम सभी का एक सा ,
मरण एक सा ही होता।
सूरज , चन्दा , तारे भी
एक सा ही सब को दिखता ।
सागर , नदिया का पानी ,
एक सा ही सब को मिलता ।
फूल हों या फिर काँटे हों ,
पवन एक सा ही मिलता ।
मानव फिर मानव से ही ,
नफरत दिल में क्यों रखता ?
इन्सां , इन्सां हो जाता ।
जाति , धर्म सब झूठे हैं ,
काश समझ में आ जाता ।
जनम सभी का एक सा ,
मरण एक सा ही होता।
सूरज , चन्दा , तारे भी
एक सा ही सब को दिखता ।
सागर , नदिया का पानी ,
एक सा ही सब को मिलता ।
फूल हों या फिर काँटे हों ,
पवन एक सा ही मिलता ।
मानव फिर मानव से ही ,
नफरत दिल में क्यों रखता ?
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