Saturday, September 1, 2018

दो प्रतिशत

अरे ओ साँबा  !
सरकार ने
हमारी कितनी तनख्वाह बढ़ाई है रे  ?
हुज़ूर ,
दो प्रतिशत।
सिर्फ दो प्रतिशत  ?
ये सरकार  की नाइंसाफी है ,
अपनी तनख्वाह बढ़ानी हो तो
चार सौ प्रतिशत
और , हमारी सिर्फ दो प्रतिशत  !
हुज़ूर ,
सत्य कह रहे हैं ,
पर , हुज़ूर
यह नाइंसाफ़ी  कहाँ है  ?
ये तो कुदरत का न्याय है ,
हर बड़ा छोटे को निगलता है ,
बड़ा सांप छोटे को खा जाता है ,
बड़ी  मछलियाँ छोटी  मछलियों को
निगल जाती हैं ,
और हुज़ूर  , एक बात और   ...
वह क्या है रे  !
हुज़ूर  , सत्ता के लिए
जनता को कुचलना ही पड़ता है ,
इतिहास गवाह है ,
इतिहास तो उसी का बनता है
जो लाशों पर चलता है ,
आपने भी तो
सम्राट अशोक का नाम  सुना  ही होगा  ,
और ,
कलिंगा युद्ध को भी जानते ही होंगे ,
लाखों लोग मारे गये थे।
महान कहलाने वाले
सिकंदर का नाम भी
आपने सुना होगा ,
मुग़ल बादशाह औरंगजेब को
कौन नहीं जानता
जिसने सत्ता के लिए
अपने सगे भाइयों का भी
क़त्ल करवा दिया था ,
सो हे हुज़ूर ,
जो त्राहि - त्राहि का शोर न हो , तो
ऊपर वाले को कौन पूछेगा  ,
कौन  पुकारेगा  ,
और
कौन याद करेगा   ?
और हुज़ूर ,
जनता तो भेड़ - बकड़ियाँ  है ,
इन्हें तो कटना ही पड़ता  है।
का फर्क पड़ता है
दो प्रतिशत मिले , या फिर
चार प्रतिशत  ,
चार सौ तो मिलने से रहा।
जब पेट खाली रहेगा , तभी तो
ऊपर वाले के आगे
हाथ  फैलायेगा , और
जब हाथ फैलायेगा  , तो
बदले में ऊपर वाले की
दुआ - ख़ैर भी मांगेगा ,
देखिये ,हम जब भी
ऊपर वाले को याद करते हैं ,
दुःख में या सुख में
(  नेपथ्य में - यहाँ तो दुःख ही दुःख है )
जय हो - उनकी ही बोलते हैं ,
तुम ठीक कह रहे हो सांबा ,
चलो , छोड़ो इस टॉपिक को ,
खैनी -वैनी खिलाओ,
हम भी अपने घर जायें ,
तुम भी अपने घर जाओ।