Monday, August 20, 2018

टिहरी झील

शहरों में तो बहुत  धूल है ,
शोर - शराबा भी बहुत है।
आह ! उमस भी इतनी  , कि ,
बुद्धि काम नहीं करती है ,
तन शिथिल हो जाता है ,
मन हार जाता है ,
चलो , कहीं और चलो ,
काम बहुत करना है ,
प्रदेश को संभालना है ,
नीतियां बनानी है ,
बिना  नीति विकास बेमानी है।
नहीं - नहीं ,
शहरों में मुश्किल है ,
दूर पहाड़ों पर
मिल सकता कोई हल है ,
विकास का रास्ता ,शायद ,
टिहरी झील की ओर से जाता है।
चलो , वहीँ चला जाए ,
प्रकृति की गोद का
आनन्द लिया जाए ,
सुरम्य पहाड़ियों के बीच
झील के पानी की सतह पर ,
बहती ठंढ़ी - ठंढ़ी नरम हवा ,
भर देगी , मस्तिष्क में ताजगी ,
निश्चय , विकास की योजना ,
जायगी निखर - संवर  -
ऐसे ही वातावरण में
देवत्व प्राप्त होता है ,
सच कहते हो  -
विकास का रास्ता  , शायद,
टिहरी झील से हो कर जाता है।