Tuesday, July 10, 2018

मरी खाल की साँस सों

अपनी सत्ता और पुत्रों के प्रति मोह ने
धृतराष्ट्र को अंधा बना दिया है ,
उसके चारों ओर खड़े
जान - गण - मन  की भीड़ ,
उसे दुश्मन से प्रतीत हो रहे हैं   ......

अपने अजेय किले , और
बंधु - बान्धवों की
अपार कतार को देख ,
वह कुटिल मुस्कुराहट
और विद्रूप हँसी से
सब का उपहास मना रहा है ,
फिर एक महाभारत की तैयारी
कलियुग ने कर ली है  ........

फैली हुई अव्यवस्थायें
उसे नहीं दीखती ,
उसके अपने अट्टहास में
गिरते - पड़ते - मरते जन
नहीं दीखते ,
उसकी आँखों पर
अहंकार का पर्दा पड़ गया है  ......

इतिहास अपने - आपको दुहराता है ,
वही चौकड़ी है ,
शकुनि भी है , गुरु  द्रोण भी ,
वृद्ध भीष्म पितामह भी
( जिन्हें अब एक बगल खड़ा कर दिया गया है  )   ......

अरे ! ओ धृतराष्ट्र !
काल का पहिया घूमता है ,
भूल मत , यहाँ सब नश्वर है ,
न तू रहेगा , न तेरी सत्ता ,,
न तेरे पुत्रों - बंधु - बांधवों की फ़ौज ,
जो बच जायेंगे तेरे परिजन ,
तब वही तेरा उपहास करेंगे   .......

मन की आँखें खोल ,
और देख  -
" मरी खाल की साँस सों  ,
लौह भस्म हो जाय "
मत ले आह ,
दुनिया ने पत्थरों को पूजा है
तो , ठोकरें भी लगाई है ,
दर्प की अग्नि में
जल जाता है सब कुछ ,
न तख़्त ही रहता ,
न ताज ही रहता ,
प्यार के ही न्याय का  ,
बस , राज  है रहता  ,