Wednesday, August 8, 2018

काश ! कि ऐसा हो जाता

काश ! कि  ऐसा हो जाता ,
इन्सां  , इन्सां हो जाता ।
जाति , धर्म सब झूठे हैं ,
काश समझ में आ जाता ।
जनम सभी का एक सा ,
मरण एक सा  ही होता।
सूरज , चन्दा  , तारे भी
एक सा ही सब को दिखता ।
सागर , नदिया का पानी ,
एक सा ही सब को मिलता ।
फूल हों या फिर काँटे हों ,
पवन एक सा ही मिलता ।
मानव फिर मानव से ही  ,
नफरत दिल में क्यों रखता  ?