Wednesday, March 18, 2015

बाल - गीत













          
             ( १ )

भालू बोला यम - यम - यम  ,
बारिश बरसा झम -झम -झम ,
नदियाँ अब भर जायेंगी ,
साथ मछलियाँ लायेंगी ,
ढेर मछलियाँ लायेंगे ,
दावत खूब उड़ायेंगे।

           














               (२ )
घोड़ा बोला हिन् -हिन् -हिन् ,
बारिश बरसा झिम-झिम-झिम ,
हरियाली छा जायेगी ,
हरी घास उग आयेगी ,
छक कर घास चबायेंगे  ,
हम तो मौज मनायेंगे ।
















            (३) 
बंदर बोला खें -खें -खें ,
पोंछ रहा अपनी आँखें ,
बारिश बरसा झर -झर -झर ,
काँप रहे हैं हम थर-थर-थर ,
आ जायेगा  मुझे बुखार ,
दौड़ के लाओ कंबल चार।
















       
               (४)
बोली गिलहरी टिक-टिक -टिक ,
बारिश बरसा टिप-टिप -टिप ,
टपक रहा घर मेरा यार ,
सह न सका बूँदों की मार ,
जल्दी से मिस्त्री बुलाओ ,
मेरे घर को तुरंत बनाओ।














             (५)
चिड़िया बोली चीं -चीं -चीं ,
बारिश का मौसम है जी ,
वर्षा होने से पहले ,
दाने कुछ चुन लायें जी ,
शाम ढ़लने से पहले ही ,
लौट हमें है आना जी।














            ( ६ )
मेंढक बोला टर -टर -टर ,
बरसा पानी टिपर-टिपर ,
बोली मेंढकी ढम्मक -ढम ,
बड़ा सुहाना है मौसम ,
कोई गाना गाओ जी ,
मेरा दिल बहलाओ जी ,
मेंढक बोला आता हूँ ,
टर -टर -टर टर्राता हूँ।
   

Wednesday, March 11, 2015

फागुनी- गीत


















फागुन में ज्यों पात-पात पर ,यौवन है छा जाता ,
बच्चे ,बूढ़े , युवा का दिल भी ,हुलसित है हो जाता।

पाकर फागुन की आहट ,है महुआ भी गदराता  ,
तन गोरी का खिल-खिल जाता ,जब वसंत है आता।

भौंरा चूमे फूल-फूल को ,प्यार बाँटता जाता ,
पाकर गंध - सुगंध बौर के ,मधुकर है बौराता।

पवन बाबरा होकर फिरता ,मलयानिल सा बहता ,
झूम-झूम खेतों में सरसों ,गीत वसंती गाता।

 है पलाश भी खिल-खिल जाता ,जंगल खूब दहकता ,
प्रकृति के हर अंग-रंग में ,मदन केलि है करता।

हर रंग का मेल है फागुन ,सबरस है बरसाता ,
सब के तन-मन रँग देने को ,यह फागुन है आता।