Friday, June 27, 2014

जो चला अकेला


मन में उठते तूफानों को ,
बाँध गगन उड़ जाना है ,
भर साहस अपने बाजू में  ,
नभ में तुमको छा जाना है।

इस धूप-छाँव की दुनियाँ में ,
सुख-दुःख साथ निभाना है ,
जीवन  के अनमोल सफर में,
मिलना और बिछड़ना  है।
मन के द्वन्द्वों को छोड़ निकल ,
तुम को मीलों चलना है ,
जो चला अकेला,वही चला ,
मंजिल पार पहुँचना है।
तू माँझी है ,जग सागर है ,
सागर लाँघ निकलना  है ,
क़श्ती है तुम्हारा मन केवल ,
क़श्ती पार ले जाना है।
 

Sunday, June 22, 2014

वतन के वास्ते


एक  पत्थर तो  हवा में उछाल कर देखो ,
कहर बन कर,दुश्मन पर बरस कर देखो ,
हो नाम शहीदों में तुम्हारा भी  कहीं ,
चमन के वास्ते , सिर पर कफ़न बाँध कर देखो।

आजादी के शोलों को जला कर रखो ,
दुश्मन से गुलिस्तां को बचा कर रखो ,
कोई नापाक निगाहें न वतन पर उठे ,
अपनी आँखों में चिंगारी सजा कर रखो।

वतन के वास्ते ,जीने का फ़न सीख लो ,
कुर्बानी का जज्वये हुनर तो सीख लो ,
दे देंगे जां ,तिरंगा न झुकने देंगे ,
अपने कलम को तलवार बनाना तो सीख लो।

नागफनी उग आया है





नागफनी  उग आया  है
---------------------------                                                      


तमाम उम्र समझते रहे हम,
रिश्तों के समीकरण ,
देखता हूँ अब इनका भी
हो गया है भौतिकिकरण।
खो गई है लावण्यता ,
हर चेहरा मुरझाया है ,
यह सच है कि  फूल कोई 
असमय ही कुम्हलाया है
"रिश्तों का अनुबंध"
अर्थ " पर टिक गया है,
" अर्थ " बिना हर रिश्ता ,
अर्थहीन हो गया है।
गैर  से दीखते हैं ,अब ,
सब ,अपने भी पराये,
लगता है  रिश्तों में ,
नागफ़नी  उग आया है। 

Friday, June 20, 2014

दीप-शिखा

 ( प्रस्तुत कविता श्री जसजीत सिंह , वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक ,उत्तर रेलवे ,मुरादाबाद के दिनांक 14 -07 -1988 को ,देहरादून स्टेशन पर प्रथम आगमन के अवसर पर स्वागत -सम्मान समारोह में मैंने पढ़ कर सुनाया तथा इसकी एक प्रति उन्हें भेंट किया )




तुम तरुवर ,हम भटके राही ,
तुम सरवर ,हम प्यासे राही  ,
तुम ज्योतिर्मय दीप-शिखा हो ,
आशा की किरणों को लेकर ,
जगमग-जगमग दीप जलाओ ,
दिशाहीन भटके राही को ,
आशा की एक राह दिखाओ ,
और ,
निराशा के सागर में ,
उतराते जो ,
कर गह कर ,
तुम उन्हें उबारो।
तुम हो एक कुसुम इस तट के ,
हम पंछी इस सागर तट के ,
कुसुम गंध को फैलाओ तुम ,
कुसुम गंध को फैलाएं हम ,
आओ मिल कर मोद मनायें ,
आओ गीत मिलन के गायें ,
जीवन को खुशियों से भर दें ,
जीवन को महकाते जायें।

तुम्हें " देवता " बना देगा …

यह बात कितनी सच है-
जो पैरों पर गिरता है
उसे ठोकर मार दिया जाता है ,
जैसे -धूल और राह का पत्थर ....
यही बात इन्सानों के साथ भी है ,
फर्क केवल इतना है, कि
धूल या पत्थर टूटते नहीं ,
इंसान यानी आदमी टूट जाता है ....
यह बात भी कितनी सच है, कि
सितारों के टूटने की आवाज नहीं होती है ,
ठीक उसी तरह ,
आदमी के भी टूटने की आवाज नहीं होती है ,
पर आदमी टूट जाता है ,
जिन्दा रह कर भी ,
जिन्दा लाश बन कर रह जाता है... ..
आदमी होकर ,
आदमी को ठोकर तो मत लगाओ ,
इन्हें पत्थर नहीं ,आदमी बनाओ।
माना , तुम देवता नहीं बन सकते हो ,
रहनुमा तो बन सकते हो !
और ,
आदमी को आदमी तो बना सकते हो !
कौन जाने ,कौन कितना थका -हारा है  ?
और ,
चुपचाप लब सिले बैठा है ?
उसकी  "थकन "और "हार "का
अंदाजा तो लगाओ ,
"सच "को जो जान पाओगे
"प्यार " का अहसास ,और
"भलाई " का मंत्र ,
तुम्हें " देवता " बना देगा  …

(  यह कविता देहरादून स्टेशन पर श्री राम प्यारे ,वरिष्ठ मंडल प्रबंधक ,उत्तर रेलवे के विदाई समारोह के आयोजन पर श्री  जसजीत सिंह , वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक ,उत्तर रेलवे ,मुरादाबाद के दिनांक 14 -07 -88 को ,उनके प्रथम आगमन पर मैंने भेंट किया )

Tuesday, June 17, 2014

पागल


जाड़े की एक रात
एक पागल , फटेहाल
घूमता रहा रात भर
सड़क पर ,
शायद वह भूखा था,
वह एक होटल के सामने रुका ,
फिर दूसरे ,
फिर तीसरे ,

अंदर होटल में लोग
नोच - नोच कर बोटियाँ खा रहेथे
और वह बाहर खड़ा
एक रोटी को तरसता  रहा ..........
किसी ने उसे तवज्जो नहीं दी ,
लोगों ने उसे  दुत्कार दिया  -
कहा -पागल है।
वह चल पड़ा ,
एक आवारा कुत्ता
उस पर भौंका ,
पागल चलता रहा ,
कुत्ते ने पागल को पास से सूंघा
फिर वह
पागल के साथ - साथ चल दिया ,
पागल ने कुत्ते को देखा
कुत्ते ने पागल को ,
जहां-जहां पागल गया
वहाँ-वहाँ कुत्ता गया .........
पागल एक कूड़े के ढेर  के पास रुका
कुत्ता भी रुक गया ,
दोनो, फिर कूड़े के ढेर  में
कुछ ढूंढने लगे ...........
अल सुबह
लोगों ने देखा
वह पागल कूड़े के ढेर  के पास
मृत पड़ा है
और
एक कुत्ता
उसके मृत शरीर से सट कर
उदास बैठा है .........

Tuesday, June 10, 2014

माँ




माँ तो माँ होती है ,
बच्चों की जां होती है ,
हो चाहे कितनी भी विपदा ,
माँ पहाड़ होती है ,
माँ तो माँ होती है।

ऊपर से कठोर दिखती है ,
दिल में ममता होती है ,
खुद झेलती है विपत ,
बच्चों को सुख देती है ,
माँ तो माँ होती है।

तुम पुकारो ईश को ,
माँ पहले आ जाती है ,
माँ नाम है ईश का ,
माँ तो पूरा जहान होती है ,
माँ तो माँ होती है।