बनना है तो बनो पेड़ बरगद के जैसा
कठिन नहीं है अगर ठान लो मन में ऐसा
सबल बनो औ सदा सहायक रहो सभी के
युगों - युगों तक याद करेंगे लोग जमीं के
प्रखर सूर्य की किरणों से जब जग यह जलने लगता है ,
अपनी छाया में आये सब को शीतलता देता है ।
बदले में कुछ नहीं मांगता , चँवर भी स्वयं झुलाता है ,
ठंढी - ठंढी हवा बहा कर , सब की थकन मिटाता है ।
काक , गोरैया , बगुला , बादुर , इसमें नीड़ बनाते हैं ,
दिन भर चाहे रहें कहीं भी , शाम ढले आ जाते हैं ।
कभी किसी को कुछ नहीं कहता , सब को आश्रय देता है ,
आँधी - बारिस , तूफानों से सब की रक्षा करता है ।
खुद आतप सह कर देता है , पथिक और पंछी को छाया ,
शांत , धीर , पर खड़ा शान से , अति विशाल उसकी काया ।
नहीं बैर वह किसी से करता , सब ने उसका गुण गाया ,
करता है सम्मान सभी का , शरण में उसकी जो आया ।
झूम - झूम कर , लहर - लहर कर , बदरा यही बुलाता है ,
बरगद का आमंत्रण पा कर , बादल जल बरसाता है ।
तापित और तृषित यह धरती , अति तृप्त हो जाती है ,
खेतों - खलिहानों की मिट्टी भी सोना बन जाती है ।
इसीलिए बरगद की पूजा करते हैं सब लोग यहाँ ,
धन्य है भारत , धन्य देश - जन , धन - धान्य है पूर्ण यहाँ ।