Tuesday, August 30, 2022

डाल पर बैठा परिंदा

सहमा - सहमा है ,
डाल पर बैठा परिंदा ,
डर  हवा में तैर रहा है ,
जाने कब,
कोई चील या कोई शिकारी पक्षी ,
झपट्टा मार जाये !
हर तरफ कोलाहल है ,
फिर भी,
मन के अन्दर सन्नाटा है ,
झूठी हँसी होठों पर है ,
लब खामोश है ,
श: ! श: !
कुछ मत बोलो  , चुप रहो !
बहकते हवाओं का कोई भरोसा नहीं ,
कब किधर से आ जाये ,
आँधी या तूफ़ान बन कर ,
कब उड़ा ले जाये !
यह घरौंदा तिनके का !
तिनके तो क्या,
बड़े -बड़े , ऊँचे - ऊँचे पेड़ ,
बड़ी -बड़ी आलीशान अट्टालिकायें भी  ........
डाल पर बैठा परिंदा ,
सहमा - सहमा है  .......

- विजय कुमार सिन्हा " तरुण "
   रचना तिथि :- 12. 03. 2021