Wednesday, February 8, 2012

सुबह के ओस कण

हरी घास पर  , किसी  आस पर 
पड़ा मौन था  कोमल   पानी   ,
मोती  के  दानों  के  जैसा 
श्वेत  बूंद  था , गौर  ललाट
हवा  के झोंके  से रह रह कर 
था काँप   रहा जलकण विराट .......

प्रात  का आभाष    पाकर  
मौन मलिन मुस्कान लाकर 
गा उठा  वह   क्षीण  राग से ......
विस्तृत रवि की किरणें 
प्रणय भाव से , ले  चला 
स्वर्ग  द्वार  की  ओर...........

विजय कुमार सिन्हा "तरुण"