Sunday, January 22, 2012

चलो गाँव की ओर

चलो गाँव की ओर जहां पुरबैया बहती है ,
चलो गाँव की ओर जहां पुरबैया बहती है।

खेतों में जहां धान की फसलें मन हर्षाती है ,
झूम-झूम गेहूं की बाली गीत सुनाती है।
चलो गाँव की ओर --------

जहां वसंत की आह्ट सुन सरसों मुस्काती है,
तीसी के नीले फूलों की चादर बिछती है ,
चलो गाँव की ओर --------

जहां सूरज की किरणों के संग भोर उतरती है ,
अमराई में कोयल मीठे गीत सुनाती है ,
चलो गाँव  की ओर --------

जहाँ पनघट पर गाँव की गोरी गागर भरती है ,
ओढ़ चुनरिया धानी रंग ,धरती इठलाती है,
चलो गाँव की ओर -------------

सन -सन जहां उमग पुरबैया चलती है,
जहां अभी भी संबंधो में उष्मा मिलती है,
चलो गाँव की ओर ----------

Tuesday, January 17, 2012

प्रीत के सागर में प्रिय तुम


प्रीत के सागर में प्रिय  तुम,
भावना  का रंग दो,
इस सिंदूरी शाम का ,
यौवन महक तो जाएगा |

हरसिंगारी  गंध को ,
उन्मुक्त बहने दो ज़रा ,
एक अल्हढ़ सा पवन का
मन मचल तो जाएगा |

थप -थापाती है उषा के
द्वार जब अरुणिम किरण ,
तब किसी नव कोकिला को
स्वर नया मिल जाएगा |

रूपसी के चितवनों के
वाण चलने दो ज़रा ,
इस धरा पर स्वर्ग का
सौन्दर्य तो बिछ जाएगा |