Wednesday, February 17, 2016

माँ की पुकार

जिस
माँ ने सींच कर
हमारी धरती को ,
लगाया अन्न का अंबार ,
भर कर पेट
कोटि - कोटि संतानों का ,
किया रक्त संचार ,
अपने निर्मल ,स्वच्छ
जल पिला कर
उन्हें पाला - पोषा ,
बड़ा किया ,
वही माँ ,
आज ' कृशकाय ' हो गई ,
हो गई है बीमार।
क्या उसकी करोड़ों संतान
उसको देंगे नया जीवनदान  ?
ताकि ,
वह पुन: स्वस्थ्य हो कर
कर सके ,
आने वाली पीढ़ी का भरण - पोषण ,
दे सके उन्हें , अमृतदान  ?
            -----   मंजु सिन्हा

कागजी आदमी


खो गई है पहचान
आज के आदमी की ,
ढूढ़ रहा है
अपना आधार ,
बिना  ' आधार '
नहीं है उसका वज़ूद ,
गो कि ,
वह जिन्दा है ,
पर कागजों में नहीं है ,
नहीं है उसका अस्तित्व ,
आदमी  ' कागजी ' हो गया है।

           -------    ( प्रकाशित )