Friday, July 25, 2014

नव क्रान्ति चाहिए





कैसी हवा चली यहाँ इस देश में हे राम ,                                                       
हर आदमी है हो रहा कामुकता का गुलाम  ।                                          
अपनी ही माँ -बहनों के अस्मत को लूटता
कर कलंकित देश को यह कर रहा बदनाम।

हर तरफ है  चीख बस मासूम कलियों  का ,                                                           
हर तरफ आक्रोश है इस नीच कृत्य का।
हैवानियत भी शर्मसार है ये देख कर ,
आँखों से बह रहा लहू पतन यह देख कर।

है नहीं रोना तुम्हें , संकल्प तुम करो ,
आँख में आँसू नहीं अंगार को भरो ,
हाथों में चूड़ियाँ नहीं तलवार को धरो ,
अस्मत के लुटेरों पर प्रहार तुम करो।

जब तक न तेरी चूड़ियाँ कटार बनेंगी  ,
जब तक न अश्रुधार ये अंगार बनेगी ,
जब तक न तेरी आहें ज्वालायें बनेंगी ,
तब तक नहीं इस  जुल्म की दीवार ढहेगी।

समाज को नई दिशा , नव क्रान्ति चाहिए ,
उन्नत समाज के लिए जन क्रान्ति चाहिए ,
अकलुष और स्वच्छ एक समाज चाहिए ,
दृढ़ शक्ति के संकल्प का समाज चाहिए।

पंगु नहीं , न मूक ,जाग्रत राष्ट्र चाहिए,
नव राष्ट्र के निर्माण को नव क्रान्ति चाहिए ,
फौलादी से विचार और आचार चाहिए ,
क्रान्ति , क्रान्ति , क्रान्ति , क्रान्ति , क्रान्ति चाहिए।


फ़रिश्तों तुम जरा ठहरो


फ़रिश्तों तुम जरा ठहरो ,
मेरा कुछ काम बांकी है.…
जरा उनसे तो कर लूँ प्यार ,
मेरा कुछ काम बांकी है.....

होंगी हूर औ परियाँ ,
मुझे मालूम ज़न्नत में ,
यहाँ है सामने मेरे वो
जीनत  प्यार तो कर लूँ  ....

है जाना छोड़ कर दुनियाँ
मुकम्मल है पता मुझको ,
मगर यह दुनियाँ भी मेरी ,
किसी ज़न्नत से कम न है ,
जरा  मैं अपनी ज़न्नत को ,
नजर भर प्यार तो कर लूँ  .....

फ़रिश्तों तुम जरा ठहरो  …

Monday, July 21, 2014

प्यार प्रकृति है ,प्यार ही ईश्वर

        

सब कहते हैं तिनका-तिनका जोड़-जोड़ घर बनता है ,
मैं कहता हूँ प्यार-प्यार को जोड़-जोड़ घर बनता है।
प्यार नहीं तो शीशमहल भी तिनके जैसा लगता है ,
जहाँ प्यार है , रूखा भोजन भी अमृत सा लगता है।
प्यार ही है जो काँटों पर भी फूल सदा मुस्काता है ,
प्यार नहीं हो जीवन में तो जीना दूभर लगता है।
प्यार प्रकृति है ,प्यार ही ईश्वर ,प्यार का ही सब नाता है ,
प्रेम सने रस पागल बादल , नभ से जल बरसाता है।



Saturday, July 19, 2014

सुहाना सावनी मौसम


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है बरसात का मौसम, चलो मिल घूम आयें हम ,                              
बारिस के मौसम में ,चलो मिल भींग आयें हम।
घटा को देख कर मेरा मयूरी मन बहकता है ,
कहता भींग लें कुछ देर , मेरा मन चहकता है।
अजब बरसात का मौसम है ये,मन को सुहाता है ,
पवन भी झूम कर चलता सदा इतराता बहता है।
बरसती बूँद है जब भी , सुनाती गीत सरगम सी ,
बदन पर पड़ती बूँदों से , उठती दिल में सिहरन सी।
फिसलती बूँद जब छू कर , तुम्हारे गोरे  गालों को ,
दमक कर दामिनी भी चूमती तेरे कपोलों को।
बरसता जब भी है सावन ,धरा भी तृप्त हो जाती ,
हो कर तृप्त यह धरणी , छटा है अपनी दिखलाती।
छा जाती हरियाली यहाँ , चारों दिशाओं में ,
संदेश है बरसात का लिखा घटाओं में।
कहीं झनकार झींगुर का , कहीं पर शोर दादुर का ,
कहीं पर चातकी की चहक भी देती सुनाई  है।
कहीं पर नाचता है मोर , कहीं पर मोरनी की कूक ,
तन में आग लगती है , दिल में उठती मीठी हूक।
चलो फिर आज हम मिल कर बना लें नाव कागद के ,
गुजारे पल जो बचपन में , उन्हें फिर आज दुहरा लें।
सुहाना सावनी मौसम , है ये श्रृंगार का मौसम ,
झूलों का मौसम है , है यह मेहँदी  का भी मौसम।
आओ तुम्हारे हाथ पर , मेहँदी रचा दें हम ,
आ जाओ बाँहों में , तुम्हें झूला झुला दें हम।
जो बूढ़ी हो गईं यादें , उन्हें फिर से नया कर लें ,
बिसरी हुई गीतों को फिर से आज हम गा  लें।

Friday, July 18, 2014

पत्थर-पत्थर, भगवान।


संत उन्हें ही जानिये , पर-दुःख जिन्हें सताय ,
करै भेद इंसान में , कैसे संत कहाय। 
जीव ईश का अंश है , है गीता का ज्ञान ,
मुझ में तुझ में ईश है , पत्थर-पत्थर , भगवान।
ना मंदिर , मस्जिद गए ,न गुरुद्वारा न चर्च ,
इन्सां धर्म निभाईये , लागे ना कोई खर्च।
कोई पूजै पोथी को , कोई पूजै पहाड़ ,
जिसकी जैसी आस्था ,करें क्यों तिल का ताड़।
जित देखा तित पाईयाँ , गुरु , ईश , अल्लाह ,
एक साथ तीनों खड़े , वाह ! वाह ! वल्लाह।