संत उन्हें ही जानिये , पर-दुःख जिन्हें सताय ,
करै भेद इंसान में , कैसे संत कहाय।
जीव ईश का अंश है , है गीता का ज्ञान ,
मुझ में तुझ में ईश है , पत्थर-पत्थर , भगवान।
ना मंदिर , मस्जिद गए ,न गुरुद्वारा न चर्च ,
इन्सां धर्म निभाईये , लागे ना कोई खर्च।
कोई पूजै पोथी को , कोई पूजै पहाड़ ,
जिसकी जैसी आस्था ,करें क्यों तिल का ताड़।
जित देखा तित पाईयाँ , गुरु , ईश , अल्लाह ,
एक साथ तीनों खड़े , वाह ! वाह ! वल्लाह।
No comments:
Post a Comment