मन में उठते तूफानों को ,
बाँध गगन उड़ जाना है ,
भर साहस अपने बाजू में ,
नभ में तुमको छा जाना है।
इस धूप-छाँव की दुनियाँ में ,
सुख-दुःख साथ निभाना है ,
जीवन के अनमोल सफर में,
मिलना और बिछड़ना है।
मन के द्वन्द्वों को छोड़ निकल ,
तुम को मीलों चलना है ,
जो चला अकेला,वही चला ,
मंजिल पार पहुँचना है।
तू माँझी है ,जग सागर है ,
सागर लाँघ निकलना है ,
क़श्ती है तुम्हारा मन केवल ,
क़श्ती पार ले जाना है।
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