Friday, June 27, 2014

जो चला अकेला


मन में उठते तूफानों को ,
बाँध गगन उड़ जाना है ,
भर साहस अपने बाजू में  ,
नभ में तुमको छा जाना है।

इस धूप-छाँव की दुनियाँ में ,
सुख-दुःख साथ निभाना है ,
जीवन  के अनमोल सफर में,
मिलना और बिछड़ना  है।
मन के द्वन्द्वों को छोड़ निकल ,
तुम को मीलों चलना है ,
जो चला अकेला,वही चला ,
मंजिल पार पहुँचना है।
तू माँझी है ,जग सागर है ,
सागर लाँघ निकलना  है ,
क़श्ती है तुम्हारा मन केवल ,
क़श्ती पार ले जाना है।
 

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