ले लो न साहब , एक गुब्बारा-
गुब्बारे बेचने वाले ने कहा ,
पिता के साथ चलता बच्चा
मचल पड़ा ,
पापा , गुब्बारे ले दो न ....
नहीं - मँहगे हैं ,
नहीं साहब , मँहगा नहीं है साहब ,
बस ,पाँच रुपये के ही तो हैं ,
पाँच रुपये ,
पाँच रुपये में क्या होता है साहब !
एक रोटी की कीमत ,
बच्चा फिर मचला -
पापा ले दो न ,
बच्चे का पिता आगे बढ़ गया ,
बच्चा मायूस हो गया।
यका - यक गुब्बारे वाला
सामने आ गया ,
बच्चे के हाथ में
एक गुब्बारा देते हुए बोला-
साहब मत देना पैसे ,
रोटी कहीं और खा लेंगे ,
बच्चे का दिल ना तोड़ेंगे ,
एक गुब्बारे लेकर
इसकी आँखों में
ख़ुशी की जो चमक दिखेगी ,
वह इस पाँच रुपये के गुब्बारे से
कहीं बहुत बड़ी है साहब ,
यह दुनिया की सब से बड़ी ,
अनमोल दौलत है ,ये बचपन
लौट कर नहीं आता साहब ,
ये बचपन लौट कर नहीं आता .........
रचना तिथि :- 07-06-2021