Tuesday, October 30, 2018

आईना कब झूठ बोलता है ?

आईने से उनको डर लगता है  ,
इसलिए , जब कभी कोई ,
उनको दिखाता है आईना ,
वो डर जाते हैं देख कर आईना ,
और , डर कर तोड़ देते हैं पसलियां ,
आईना दिखाने वालों की  ,
साथ ही तोड़ देते हैं आईना ।
पर आईना तो आईना ही ठहरा ,
शीशे का बना आईना  ,
टूट कर , बिखर कर भी  ,
दिखाता रहा उनको ,
उनका ही चेहरा ,
उनका मुँह चिढ़ाता रहा  आईना ,
आईना तो असली चेहरा ही दिखाता है ,
भला , आईना कब झूठ बोलता है  ?

आओ मिल कर दीप जलायें

देश की आजादी की खातिर ,
झूल गए जो फाँसी पर  ,
आओ कुछ आँसू छलकायें  ,
उन वीरों  के  नाम ।

जिनके त्याग से लहराता है ,
आज तिरंगा प्यारा ,
आओ कुछ हम गीत लिखें ,
उन वीरों के नाम ।

जिनके बलिदानों से मिली है  ,
हमें देश की आज़ादी  ,
आओ मिल कर दीप जलायें  ,
उन वीरों के नाम ।


कभी - कभी तुम अपने मन से

कभी - कभी तुम अपने मन से ,
मन की बातें कर के देखो ।
कभी -  कभी मन के भावों को ,
मन ही मन में पढ़ कर देखो ।
कभी - कभी तुम चुपके - चुपके ,
चुपके - चुपके रो कर देखो ।
कभी - कभी दिल के जख्मों को ,
थोड़ी और हवा कर देखो ।
आँसू गर जो चाहे छलकना ,
आँसू को समझा कर देखो ।
होंगे मीत तुम्हारे शत - शत ,
उनके मन को पढ़ कर देखो ।
सुख - दुःख हैं जीवन के संगी ,
उनको मीत बना कर देखो ।
सुख में तो सब ही हँसते हैं ,
दुःख में भी मुस्का कर देखो ।
कभी - कभी तुम अपने मन से ,
मन की बातें कर के देख ।