काव्य मंजरी
विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
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Thursday, July 11, 2019
तुम यूँ ही सदा मुस्कुराती रहो ,
जीत के गीत हरदम ही गाती रहो।
आशीष , शुभकामना।
मौन
मौन ही तो साधना है ,
मौन ही आराधना है ,
मौन में ही प्रश्न है ,
मौन में उत्तर समाहित ,
समझ सके गर जो भी कोई,
भाषा अबोले मौन की ,
तो , वह , इतना जान ले ,
मौन ही सबसे मुखर है ,
शेष सब ही गौण है ,
शेष सब ही गौण है ...........
( प्रकाशित )
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