Friday, June 10, 2016

आर्तनाद

पहाड़ का दर्द
पहाड़ सा दर्द ,
 रात सोता है
सुबह रोता है
यह पहाड़ ,
अपने छाती पर होते
अतिक्रमण को देख कर ,
अपने विद्रूप होते
स्वरूप को देख कर ।

दरकता है चट्टान
दरकता है पहाड़ का सीना ,
दम घुटता है
फैलाये गये
प्रदूषण से
जो छोड़ गये हैं
पहाड़ की छाती पर ,
ढ़ेर सारा  कचरा ,
जूठन ,अपशिष्ट ,
मल और  मूत्र ।

वो गाते  हैं गीत
लहराते हैं पताका
" विजय " का
सुनते नहीं
मेरा आर्तनाद।
जिस  दिन
मिट जाएगा
मेरा अस्तित्व
मिट जाएगा
जंगल और कानन
सूख जायेंगी नदियां
मिट जायेगी
यह धरा।

         -------   (  पहाड़ का दर्द  शीर्षक से प्रकाशित )

Saturday, June 4, 2016

पाई यह कैसी आजादी ?

जहाँ बोली पर पहरा रहता ,
अभिव्यक्ति पर हो पाबंदी ,
कदम- कदम पर झूठ का फंडा  ,
सच कहने पर काराबन्दी ,
पाई यह कैसी आजादी  ?

कहते हमने की है तरक्की ,
टुकड़े में परिवार बँटा है ,
चचा , बुआ ,ताया - ताई ,
वृद्धाश्रम में दादा -दादी ,
पाई यह कैसी आजादी  ?

आरक्षण की भीत डाल कर ,
नफ़रत दिल में जगा रहे हैं ,
सत्ता की खातिर करते हैं ,
जनता के धन की बर्बादी ,
पाई यह कैसी आजादी  ?

किस माँ के हैं बेटे ऐसे ,
इतिहास के आखर मेटे ,
महापुरूषों के मुख्य पर कालिख ,
पोत रहे ये अवसरवादी ,
पाई यह कैसी आजादी  ?