पहाड़ का दर्द
पहाड़ सा दर्द ,
रात सोता है
सुबह रोता है
यह पहाड़ ,
अपने छाती पर होते
अतिक्रमण को देख कर ,
अपने विद्रूप होते
स्वरूप को देख कर ।
दरकता है चट्टान
दरकता है पहाड़ का सीना ,
दम घुटता है
फैलाये गये
प्रदूषण से
जो छोड़ गये हैं
पहाड़ की छाती पर ,
ढ़ेर सारा कचरा ,
जूठन ,अपशिष्ट ,
मल और मूत्र ।
वो गाते हैं गीत
लहराते हैं पताका
" विजय " का
सुनते नहीं
मेरा आर्तनाद।
जिस दिन
मिट जाएगा
मेरा अस्तित्व
मिट जाएगा
जंगल और कानन
सूख जायेंगी नदियां
मिट जायेगी
यह धरा।
------- ( पहाड़ का दर्द शीर्षक से प्रकाशित )
पहाड़ सा दर्द ,
रात सोता है
सुबह रोता है
यह पहाड़ ,
अपने छाती पर होते
अतिक्रमण को देख कर ,
अपने विद्रूप होते
स्वरूप को देख कर ।
दरकता है चट्टान
दरकता है पहाड़ का सीना ,
दम घुटता है
फैलाये गये
प्रदूषण से
जो छोड़ गये हैं
पहाड़ की छाती पर ,
ढ़ेर सारा कचरा ,
जूठन ,अपशिष्ट ,
मल और मूत्र ।
वो गाते हैं गीत
लहराते हैं पताका
" विजय " का
सुनते नहीं
मेरा आर्तनाद।
जिस दिन
मिट जाएगा
मेरा अस्तित्व
मिट जाएगा
जंगल और कानन
सूख जायेंगी नदियां
मिट जायेगी
यह धरा।
------- ( पहाड़ का दर्द शीर्षक से प्रकाशित )
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