Monday, July 16, 2018

विवश पाँचाली

दिल के दर्द उकेरूँ कैसे 
इस कागज़ के टुकड़े पर ,
मन की व्यथा बताऊँ कैसे
काँप रहे सुकुमार अधर ।

जिधर - जिधर दृष्टि करता हूँ ,
विवश पाँचाली दिखती है  ,
बीच सड़क पर दुर्योधन की
फ़ौज खड़ी दिखती   है ।

विज्ञापन के नारों में बस
है सु:शाशन का नारा ,
राजनीति के चक्र्व्यूह में
अभिमन्यु सदा ही हारा।

हर दिन , हर शै  ,गली - गली में ,
है चीत्कार बेटी का ,
सुनकर भी है नहीं टूटता ,
तुला यहाँ पर न्याय का।

जाने कितनी निर्भया रोज
हा ! निरपराध मरती है ,
जाने कितनी बिटियों के तन ,
नित ही विदीर्ण होती है।

है बड़े सुनहरे पट्टी पर ,
बेटी बचाव का नारा ,
कैसे पढ़ पाएगी बेटी ,
शाशन - समाज नक्कारा।