Friday, August 31, 2018

सब कुछ सत्य तो नहीं

कितना अच्छा लगता है
अपने नाम के आगे
एक  '  विशेषण  ' का लग जाना ,
एक विशेष  ' वर्ग '  से
पुरस्कृत हो जाना ,
कितना सुन्दर  और स्वर्णिम है
वह शब्द और संबोधन  !
जब इतने बड़े सम्मान से
हमें नवाज़ा जाता है ,
' ख़ैरात 'में जब
इतना सब कुछ मिल जाता है ,
' श्रम 'का झमेला क्यों पालें  ?
क्यों पसीना  बहायें  ?
कादो  - कीचड़ में क्यों सनें  ?
जब हमें
एक मेहमान की तरह
मिल जाता है
सारा आदर -  सत्कार ,
मुफ़्त का दाना - खाना ,
और , ' वज़ीफा '
फिर क्यों ढोयें हम
व्यर्थ का पुस्तक का भार  ?
" समान अधिकार "  का नारा
संविधान की किताबों में है ,
धरातल पर नहीं ,
किताबों में तो बहुत कुछ लिखा है ,
पर सब कुछ सत्य तो नहीं   ,
यही सत्य है ।