Wednesday, July 31, 2013

हमें ये गाँव बुलाते हैं



















ये गुनगुनाती सी हवा,
ये लहलहाते खेत,
ये गाँव  की पगडंडियाँ ,
ये टेढ़े - मेढ़े  मेड़ ,
हैं ,मेरे मन को हुलसाते ,
हमें , ये गाँव बुलाते हैं   ।
ये मीठी , धान की खुशबू,
लरजते , गेहूँ की बाली ,
वो नीले फूल तीसी के ,
वो पीले फूल सरसों के ,
इशारे  मुझको करते हैं ,
हमें ये गाँव बुलाते हैं   ।

जहाँ , रख कांधो पर , विश्वास का
हल , कृषक  चलते हैं ,
बुआई धान की करते जहाँ ,
गाती कृषक बाला ,
झमक  कर घन बरसते हैं ,
हमें ये गाँव बुलाते हैं  ।

यह बस्ती है किसानों की ,
यह सच्चों का बसेरा है ,
निकल सूरज लगाता है ,
जहाँ, नित रोज फेरा है ,
जहां , मिल प्यार बोते हैं ,
हमें ये गाँव बुलाते हैं  ।

( 21-3-2012 )