Friday, February 13, 2015

रात-रात भर सो न सका मैं

रात-रात भर सो न सका मैं ,
जागा सारी रात ,
रही सताती मुझको तो बस ,
तेरी भोली बात।

इन हथेलियों में थामे था ,
तेरे कोमल गात ,
देख रहा था ,चाँद सामने ,
आँखें थी मदमात। 


मौन शब्द था ,अधर  बंद थे ,
नयनों की थी बात ,
भले होंठ ,ये खुले नहीं ,पर ,
मौन मिली सौगात।

नहीं स्वप्न था ,सब कुछ सच था ,
स्वासें करतीं बात ,
धीरे-धीरे भींग रही थी ,
चुपके-चुपके रात।

शुभ्र निशा के मधुर  क्षणों में ,
हुई सरस बरसात ,
टूट गये तटबन्ध सहज ,जब ,
मिले गात से गात।

मन के अन्दर ,कोलाहल था ,
प्रश्नों की बरसात ,
पर , निश्छल सौंदर्य ,सो रहा ,
रख काँधों पर गात।

रात -रात भर ,सो न सका मैं ,
जागा सारी रात।

लो , वसंत आ गया

 

चितवन से, जब कामदेव के , प्रीति - वाण चल जाता ,
दिग-दिगंत के रोम-रोम में ,मद वसंत छा जाता।

वन-उपवन ,उपवन-वन ,कानन ,पवन बाबरा फिरता ,
डार -डार पर फूल बिहँसते ,अलि गुंजन है करता।

झूल आम्र की डार , बौर भी , सौरभ खूब लुटाता ,
चैत मास, फूले महुआ ,जब , वन सुरभित हो जाता।

अमलतास,सेमल,पलास भी  , लहक- लहक सा जाता ,
मानो ,नवयौवना धरा के  , स्वागत में बिछ जाता।

पिक पुकार  में कोयलिया का , स्वर ,पंचम हो जाता ,
प्रत्युत्तर में ,छिप कर पिक भी ,उसको खूब रिझाता।

फूले सरसों ,खेत-खेत में , जब वसंत है आता ,
पनघट पर निहुरे गोरी का , यौवन है मदमाता।

होलिहार के गीतों पर है , ढोलक खूब ढमकता ,
अल्हड़ गोरी के पैरों में , पायल खूब झनकता।

शुक ,पिक ,खंजन का कलरव भी , मन को है भा जाता ,
" लो , वसंत आ गया ,पथिक रे ," संदेशा दे जाता।                                                                                            
   (   नोट  : -  लखनऊ से प्रकाशित मासिक पत्रिका  " प्राची प्रतिभा "  मार्च 2016 में प्रकाशित  )