Friday, February 13, 2015

रात-रात भर सो न सका मैं

रात-रात भर सो न सका मैं ,
जागा सारी रात ,
रही सताती मुझको तो बस ,
तेरी भोली बात।

इन हथेलियों में थामे था ,
तेरे कोमल गात ,
देख रहा था ,चाँद सामने ,
आँखें थी मदमात। 


मौन शब्द था ,अधर  बंद थे ,
नयनों की थी बात ,
भले होंठ ,ये खुले नहीं ,पर ,
मौन मिली सौगात।

नहीं स्वप्न था ,सब कुछ सच था ,
स्वासें करतीं बात ,
धीरे-धीरे भींग रही थी ,
चुपके-चुपके रात।

शुभ्र निशा के मधुर  क्षणों में ,
हुई सरस बरसात ,
टूट गये तटबन्ध सहज ,जब ,
मिले गात से गात।

मन के अन्दर ,कोलाहल था ,
प्रश्नों की बरसात ,
पर , निश्छल सौंदर्य ,सो रहा ,
रख काँधों पर गात।

रात -रात भर ,सो न सका मैं ,
जागा सारी रात।

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