Wednesday, March 11, 2015

फागुनी- गीत


















फागुन में ज्यों पात-पात पर ,यौवन है छा जाता ,
बच्चे ,बूढ़े , युवा का दिल भी ,हुलसित है हो जाता।

पाकर फागुन की आहट ,है महुआ भी गदराता  ,
तन गोरी का खिल-खिल जाता ,जब वसंत है आता।

भौंरा चूमे फूल-फूल को ,प्यार बाँटता जाता ,
पाकर गंध - सुगंध बौर के ,मधुकर है बौराता।

पवन बाबरा होकर फिरता ,मलयानिल सा बहता ,
झूम-झूम खेतों में सरसों ,गीत वसंती गाता।

 है पलाश भी खिल-खिल जाता ,जंगल खूब दहकता ,
प्रकृति के हर अंग-रंग में ,मदन केलि है करता।

हर रंग का मेल है फागुन ,सबरस है बरसाता ,
सब के तन-मन रँग देने को ,यह फागुन है आता।

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