Thursday, September 25, 2014

चिड़ियाँ प्यासी















भरी दुपहरी ,
 लू में तपती
चिड़ियाँ प्यासी ,
बहुत उदासी ,
सूरत रोनी ,
ढूंढ़ रही है पानी।

पानी कहाँ शहर में मिलता ,
यहाँ पानी पैसों से मिलता ,
बोलो चिड़ियाँ ,
कुछ तो बोलो ,
पास तुम्हारे ,
कितने पैसे ?

पिता ब्रह्म ,पिता ही पर्वत

माता धरणि सम हुई , पिता गगन से ऊँचे ,
दृढ़ और संतुलित सीख दे , सुत व सुता को सींचे।

पिता ब्रह्म ,पिता ही पर्वत , माँ शक्ति का स्रोत ,
अटल सत्य है सर्व लोक में , पिता गति के स्रोत।

पिता ने अपनी पौरुषता से , साहस का संचार किया ,
साम-दाम और दंड भेद का ,संतति को है ज्ञान दिया।

कवच, धैर्य व शौर्य - शील का , पिता ने ही है पहनाया ,
विषम काल में शांत भाव से , जीवन जीना सिखलाया।
 
माता ने ममता सिखलाया , पिता से सीखा दृढ़ता ,
उद्दम से ही भाग्य बदलता , कर्म ही भाग्य विधाता।
 
इस सुंदर सृष्टि में हमने , जीवन को साकार किया ,
नमन पिता को हम सब का है , जिसने यह उपकार किया।