काव्य मंजरी
विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
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Thursday, September 25, 2014
चिड़ियाँ प्यासी
भरी दुपहरी ,
लू में तपती
चिड़ियाँ प्यासी ,
बहुत उदासी ,
सूरत रोनी ,
ढूंढ़ रही है पानी।
पानी कहाँ शहर में मिलता ,
यहाँ पानी पैसों से मिलता ,
बोलो चिड़ियाँ ,
कुछ तो बोलो ,
पास तुम्हारे ,
कितने पैसे ?
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