काव्य मंजरी
विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
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Friday, September 26, 2014
कोयल क्यों काली हुई ?
पाकर इतनी मीठी बोली ,
कोयल क्यों काली हुई ?
कुहू-कुहू का रट क्यों करती ,
किसकी मतवाली हुई ?
कूज , कूज कर शोर हो करती ,
क्यों कर तुम वातुल हुई ?
आम्र-कुञ्ज में छिपती फिरती ,
क्यों लाजो वाली हुई
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