Tuesday, January 16, 2018

इसीलिये वह जली

जाने कितनी पीड़ा
रही होगी उसके मन में  ,
जब ही मन के साथ
स्वयं अपने ही तन में
उसने आग लगाई होगी  ,
हाँ , अवश्य ही
तपन आग से भी ज्यादा
उसके अपने मन की होगी ,
इसीलिए वह जली
नहीं चीखी  - चिल्लाई  ......

अन्तर्मन  की पीड़ा  में  जब
पल -पल वह  घुलती  होगी ,
अति  विवश  हो  कर  ही  उसने
जग  से  कूच  किया  होगा ,
जाने  कितने  दर्द  रहे  होंगे
उसके  हृतस्थल  में  ,
जब  कण्ठहार  रस्सी  का , वह
ग्रीवा  में  डाल  रही  होगी ,
नहीं  चीख -चिल्लाहट  थी ,
पीड़ा  थी  इतनी  दुःखदायी।
इसीलिये  वह  जली
नहीं  चीखी  चिल्लाई  .......

स्तब्ध  दिशायें  हुईं
हुई  तार -तार  जब अस्मत ,
तुला  न्याय  की  भी  टूटी
जब  हुआ  न्याय  असंगत ,
पीड़ित  को  ही  दोषी  मान ,
दण्डित  वह  करता  है ,
और  ,
भेड़िए  लेते  हैं  जग  में
खुले  आम  अंगड़ाई ,
इसीलिए  वह  जली
नहीं  चीखी  चिल्लाई   .....

         --- ( प्रकाशित )