जाने कितनी पीड़ा
रही होगी उसके मन में ,
जब ही मन के साथ
स्वयं अपने ही तन में
उसने आग लगाई होगी ,
हाँ , अवश्य ही
तपन आग से भी ज्यादा
उसके अपने मन की होगी ,
इसीलिए वह जली
नहीं चीखी - चिल्लाई ......
अन्तर्मन की पीड़ा में जब
पल -पल वह घुलती होगी ,
अति विवश हो कर ही उसने
जग से कूच किया होगा ,
जाने कितने दर्द रहे होंगे
उसके हृतस्थल में ,
जब कण्ठहार रस्सी का , वह
ग्रीवा में डाल रही होगी ,
नहीं चीख -चिल्लाहट थी ,
पीड़ा थी इतनी दुःखदायी।
इसीलिये वह जली
नहीं चीखी चिल्लाई .......
स्तब्ध दिशायें हुईं
हुई तार -तार जब अस्मत ,
तुला न्याय की भी टूटी
जब हुआ न्याय असंगत ,
पीड़ित को ही दोषी मान ,
दण्डित वह करता है ,
और ,
भेड़िए लेते हैं जग में
खुले आम अंगड़ाई ,
इसीलिए वह जली
नहीं चीखी चिल्लाई .....
--- ( प्रकाशित )
रही होगी उसके मन में ,
जब ही मन के साथ
स्वयं अपने ही तन में
उसने आग लगाई होगी ,
हाँ , अवश्य ही
तपन आग से भी ज्यादा
उसके अपने मन की होगी ,
इसीलिए वह जली
नहीं चीखी - चिल्लाई ......
अन्तर्मन की पीड़ा में जब
पल -पल वह घुलती होगी ,
अति विवश हो कर ही उसने
जग से कूच किया होगा ,
जाने कितने दर्द रहे होंगे
उसके हृतस्थल में ,
जब कण्ठहार रस्सी का , वह
ग्रीवा में डाल रही होगी ,
नहीं चीख -चिल्लाहट थी ,
पीड़ा थी इतनी दुःखदायी।
इसीलिये वह जली
नहीं चीखी चिल्लाई .......
स्तब्ध दिशायें हुईं
हुई तार -तार जब अस्मत ,
तुला न्याय की भी टूटी
जब हुआ न्याय असंगत ,
पीड़ित को ही दोषी मान ,
दण्डित वह करता है ,
और ,
भेड़िए लेते हैं जग में
खुले आम अंगड़ाई ,
इसीलिए वह जली
नहीं चीखी चिल्लाई .....
--- ( प्रकाशित )
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