Sunday, February 4, 2018

" आग "

रोटी पकाने के लिए ,
आग की जरूरत होती है ,
रोटी ,  वह चाहे पेट के लिए हो
या , राजनीतिक लिप्सा के लिए ,
या फिर ,
कुर्सी के लिए ही।

आग जलाने के लिए ,
समिधा की जरूरत होती है ,
समिधा चाहे  " धर्म " की हो
अथवा , " जाति  " की हो ,
या फिर ,
" आरक्षण " की ही
आग तो आग है ,
वह कभी फर्क नहीं करती ,
" अमीर " और " गरीब " की ,
" बच्चे " और " बूढ़े " की ,
" मर्द " और " औरत " की ,
" अभिजात " और  " अनअभिजात " की ,
कोई भी जले ,
" युवा " जलें तो जलें ,
" प्रतिभा " जलती है तो जले ,
" देश " जलता है तो जले ,
रोटी अपनी सिंकनी चाहिए  ।

कब छुटकारा पायेंगे हम
इस ओछी मानसिकता से  ?
यह देश हमारा है ,
ये युवा हमारे हैं ,
ये  " बच्चे " ये  " बूढ़े "
ये हमारी  " बहनें " और  " माएं "
हमारी ताकत  हैं  ,
हमारी धरोहर हैं।
क्या हम इतने कमजोर हैं
कि ,
अपनी अमानत की ,
स्वयं , रक्षा  नहीं कर सकते  ?
या फिर , हम अविवेकी हैं  ?
हमारी कमजोरियों और अविवेकीपन को
भाँप कर ही ,
शत्रु बलवान होते हैं  ।
तो , आओ ,
हम अपने सीने में आग  जलायें  ,
और ,
अपने अन्दर और बाहर के
शत्रुओं का नाश करें ,
अपने मन की  " सरहदों "को
अपने  देश की "  सरहदों  "  को
सुरक्षित करें ,
और ,
गर्व से  कहें  -
हम महान हैं ,
यह हमारा देश महान है ,
यह  " भारत " है , 
यह हमारा भारत है। 
 
ब्लॉग तिथि - 04 - 02 - 2018


( नोट : - प्रकाशित )