Monday, July 20, 2015

पावस ने छंद रचे

पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात- पात ,
जल धारा बूँदों की , लिपटी है गात- गात।

अंबर को चूम रहा , कजरारा बदरा है ,
मतवारे मौसम में , किसका दिल ठहरा है !
बैठे शुक शाखों पर ,करते हैं राग  - बात ,
पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात - पात।

मखमल सी दूब बिछी , मन मयूर नाच रहा ,
सतरंगी इन्द्रधनुष , सबके मन मोह रहा ,
प्रेम गीत लिख डारे  , सावन ने आज रात ,
पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात - पात।

बदरा भी  लहरा कर , घन, घन , घन घहरा कर ,     
अंबर जल बरसा कर , धरती को विहसाँ कर ,           
चीड़ औ चिनार संग , करते हैं रसिक  बात ,
 पावस ने छन्द रचे तरुवर के पात -पात।