पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात- पात ,
जल धारा बूँदों की , लिपटी है गात- गात।
अंबर को चूम रहा , कजरारा बदरा है ,
मतवारे मौसम में , किसका दिल ठहरा है !
जल धारा बूँदों की , लिपटी है गात- गात।
अंबर को चूम रहा , कजरारा बदरा है ,
मतवारे मौसम में , किसका दिल ठहरा है !
बैठे शुक शाखों पर ,करते हैं राग - बात ,
पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात - पात।
मखमल सी दूब बिछी , मन मयूर नाच रहा ,
सतरंगी इन्द्रधनुष , सबके मन मोह रहा ,
प्रेम गीत लिख डारे , सावन ने आज रात ,
पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात - पात।
बदरा भी लहरा कर , घन, घन , घन घहरा कर ,
अंबर जल बरसा कर , धरती को विहसाँ कर ,
चीड़ औ चिनार संग , करते हैं रसिक बात ,
पावस ने छन्द रचे तरुवर के पात -पात।
पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात - पात।
मखमल सी दूब बिछी , मन मयूर नाच रहा ,
सतरंगी इन्द्रधनुष , सबके मन मोह रहा ,
प्रेम गीत लिख डारे , सावन ने आज रात ,
पावस ने छंद रचे , तरुवर के पात - पात।
बदरा भी लहरा कर , घन, घन , घन घहरा कर ,
अंबर जल बरसा कर , धरती को विहसाँ कर ,
चीड़ औ चिनार संग , करते हैं रसिक बात ,
पावस ने छन्द रचे तरुवर के पात -पात।
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