Monday, May 12, 2014

माँ !तुम क्यों चली गईं ?


माँ !तुम क्यों चली गईं ?
तुम थी 
तो घर था ,परिवार था ,
व्रत था ,त्योहार था ,
भाई थे ,बहन थी ,
नाते रिश्तेदार थे  ,
खुशियाँ थी ,भाव था ,
एक दूसरे के लिये प्यार था |

माँ !तुम क्यों चली गईं ?
आज भी सब कुछ है ,
पर प्यार का अभाव है ,
भाई है बहन है ,
पर रिश्तों में दुराव है ,
आदर का अभाव है ,
खुद को बड़ा दिखाने का चाव है |

माँ तुम्हारे जाने के बाद..
घर अब मकान है ,
सबके लालसा की दुकान है ,
रिश्तों को तोड़ने का सामान है ,
बदनीयती बढ़ाने का खान है,

माँ !शायद तुमको इसका अहसास था ,
दिल में दर्द था ,मन उदास था ,
तभी तुम चली गईं ,
और तुम्हारा मकान ?
सब कुछ देख कर ,
शर्मशार है ,
और अपने आपको
धरती में मिलाने को
बेकरार है |
   -  मंजु सिन्हा
       डी - 40 , रेस कोर्स ,
        देहरादून। 
      11-05-2014   (  मदर डे स्पेशल  )