Saturday, July 19, 2014

सुहाना सावनी मौसम


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है बरसात का मौसम, चलो मिल घूम आयें हम ,                              
बारिस के मौसम में ,चलो मिल भींग आयें हम।
घटा को देख कर मेरा मयूरी मन बहकता है ,
कहता भींग लें कुछ देर , मेरा मन चहकता है।
अजब बरसात का मौसम है ये,मन को सुहाता है ,
पवन भी झूम कर चलता सदा इतराता बहता है।
बरसती बूँद है जब भी , सुनाती गीत सरगम सी ,
बदन पर पड़ती बूँदों से , उठती दिल में सिहरन सी।
फिसलती बूँद जब छू कर , तुम्हारे गोरे  गालों को ,
दमक कर दामिनी भी चूमती तेरे कपोलों को।
बरसता जब भी है सावन ,धरा भी तृप्त हो जाती ,
हो कर तृप्त यह धरणी , छटा है अपनी दिखलाती।
छा जाती हरियाली यहाँ , चारों दिशाओं में ,
संदेश है बरसात का लिखा घटाओं में।
कहीं झनकार झींगुर का , कहीं पर शोर दादुर का ,
कहीं पर चातकी की चहक भी देती सुनाई  है।
कहीं पर नाचता है मोर , कहीं पर मोरनी की कूक ,
तन में आग लगती है , दिल में उठती मीठी हूक।
चलो फिर आज हम मिल कर बना लें नाव कागद के ,
गुजारे पल जो बचपन में , उन्हें फिर आज दुहरा लें।
सुहाना सावनी मौसम , है ये श्रृंगार का मौसम ,
झूलों का मौसम है , है यह मेहँदी  का भी मौसम।
आओ तुम्हारे हाथ पर , मेहँदी रचा दें हम ,
आ जाओ बाँहों में , तुम्हें झूला झुला दें हम।
जो बूढ़ी हो गईं यादें , उन्हें फिर से नया कर लें ,
बिसरी हुई गीतों को फिर से आज हम गा  लें।