Friday, October 30, 2020

नयनों की नयनों से

नयनों की नयनों से ही  ,
ना ,जाने क्या -क्या बात हुई ,
कसमस -कसमस दिन बीता ,
साँझ ढली , फिर रात हुई।

चाँद छुपा जा अंक गगन के ,
तारों की बरात सजी ,
अधरों के आमंत्रण पर ,
अधरें भी रक्ताभ हुईं।

साँसों का था मिलन एक बस ,
चुपके -चुपके रात हँसी ,
महक उठा तब अंग -अंग ,
अमृत की बरसात हुई। 

खोई थी मादक सपनों में 
अनायास ही आँख खुली ,
कोयल की कूकों से जब ,
स्वर्णिम सी एक भोर हुई ।

अलसाई आँखों ने कर दी ,
चुगली बीते रात की ,
पायलिया ने खोल दिए सब ,
राज प्यार के बात की।

Thursday, October 15, 2020

सात समन्दर पार

आँखों में ये कतरा है , 

या कोई यह दरिया है ,

या सागर ही उमड़ा है ,

ओह !सात समन्दर पार ,

बेटा मेरा रहता है। 

दिनांक - 10 -10 - 2020 

Sunday, September 20, 2020

, माँ जैसी ही लगती है

जब भी वह मुझ से मिलती है ,

वह बड़े प्यार से मिलती है ,

उसकी वाणी तो सच मुझको ,

मीठी मिश्री सी लगती है। 

वह वृद्धा मुझको तो , मेरी ,

हाँ  ,माँ जैसी ही लगती है। 

आँखों में प्यार का भाव भरा ,

चेहरे पर झुर्री सजी हुई ,

रख दे गर  सिर  पर हाथ जो वो ,

आशीष की बारिस करती है। 

वह वृद्धा मुझको तो  मेरी ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

मैं जब भी नत हो जाता हूँ ,

पावन चरणों को छूने को ,

वो , बाँहें पकड़ उठाती है ,

वह अपने गले लगाती है। 

वह वृद्ध मुझको तो , सच ही ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

मैं धन्य - धन्य हो जाता हूँ ,

उस क्षण सुख स्वर्ग का पाता हूँ ,

आँखों से झड़ते हैंआँसू ,

बेटा कह मुझे बुलाती है। 

वह वृद्धा मुझ को तो सच ही ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

हो सिर पर जिसके हाथ सदा ,

माँ के स्नेहिल करकमलों का ,

दुःख - दर्दों की ही कौन कहे ,

मौत लौट कर जाती है। 

वह वृद्धा मुझको तो , सच ही ,

हाँ , माँ जैसी ही लगती है। 

रचना तिथि -- 13 09 -2020

 

Tuesday, September 8, 2020

बस एक तेरा नूर

 बहुत गुजर गया है ,

चन्द रोज और गुजर जायेंगे ,

हम तो वो दरख़्त हैं , जो 

कुछ न कुछ देकर ही जायेंगे। 

ज़माने ने दिया है ,

मुझको बहुत कुछ ,

प्यार , मोहब्बत ,इश्क और अखलाक़ ,

सब कुछ तुमको ही नज़र कर जायेँगे। 

किसी से क्या शिक़वा , क्या गिला ,

सब यहीं छोड़ जायेंगे ,

तुम्हारी यादों के सिवा ,

कुछ और ना ले जायेंगे। 

ये मकां , ये असबाब , ये साजो - सामां ,

सब यहीं रह जायेँगे ,

बस एक तेरा नूर  , तेरी मुस्कुराहट ,

जनम - जनम याद आयेंगे। 

( रचना तिथि : - 03 - 09 - 2020 )

Thursday, August 27, 2020

( 1 ) साजिस और ( 2 ) मेरा मन

( 1  )      साजिस
बूढ़े बरगद और पीपल के पेड़
यूँ ही धरासायी नहीं हुए होंगे ,
जरूर आसमां के                
नक्षत्रों ने मसविरा किया होगा ,
रचे होंगे साजिस ,
वरना आँधियों की क्या बिसात।

( 2  )  मेरा मन
मन ,मन भर का भारी हो गया ,
मेरा मन ,
मन ही मन में मेरे मन से ,
दूर हो गया मेरा मन ,
मन की मन से बात हुई थी ,
मन ही मन ,
मन की मन की बात रह गई ,
मन ही मन ,
मन ही मन में हुआ उदास ,
यह मेरा मन।
 मन कुछ कहता , मन कुछ सुनता ,
सुन कर भी अनसुनी करता ,
मन ही मन में मन सोचता ,
कैसा है यह मेरा मन ?

Wednesday, July 15, 2020

ओ मनुज तू धीर धर

ओ मनुज तू धीर धर ,
ना हो विकल , न हो विकल।
आँधियों का जोर है ,
तूफ़ान का ये शोर है ,
पल में गुजर यह जायेगा ,
कहर भी थम जायेगा ,
कुछ भी नहीं तो नित्य है ,
सब कुछ यहाँ अनित्य है ,
जो आज है , ना होगा कल ,
पल ,पल बदलता है ये पल ,
ओ मनुज तू धीर धर ,
ना हो विकल ,ना हो विकल।

स्याह जितनी रात हो ,
आघात पर आघात हो ,
मिट जाता होते प्रात ही ,
आघात भी होगा विफल ,
ओ  मनुज तू धीर धर ,
ना हो विकल , ना हो विकल।

Sunday, June 14, 2020

कोरोना

हर तरफ भय का माहौल है ,
हर आदमी अपने आप में सहमा है ,
पसरा है हर तरफ ख़ौफ़ का मंजर ,
कोरोना लेकर आया है एक नया मंजर ,
इसने लोगों को घरों में दुबकाया है ,
सबके नाक-मुँह पर पट्टी बंधवाया है ,
हमें एक दूजे से दूर कराया है ,
तिरोहित हो गई अधरों की मुस्कान ,
अब अधरों पर सन्नाटा छाया है।
एक नए युग की शुरुआत हो गई है ,
ऐसा लगता है , हम सब अब ,
तीसरे लोक   के प्राणी हो गए हैं ,
लेकिन , सच तो यह है , कि
हम सब आदिकाल के
पूर्वजों के रूप में आ गए हैं।

Sunday, June 7, 2020

आरज़ू

सोचता हूँ ,
जब भी तेरा दम निकले , मेरी बाहों में निकले ,
मेरे अरमान , मेरा प्यार , तेरे संग ही हो ले ,
ऐ ख़ुदा ! मेरी ये आरज़ू पूरी कर दे ,
मेरे प्यार को फिर से दुल्हन तो  बना दे।
मेरी हसरत है ,
मैं एक बार फिर तेरे माँग में सिन्दूर सजाऊँ ,
तेरे हाथों की हथेली में , मेंहदी तो रचाऊँ ,
तेरे पैरों को महावर के रंगों से सजा कर ,
तुझे रुख़सत करूँ पीहर , डोली में बिठा कर कर।

एक दीया जला रहा हूँ

एक पागल एक क़ब्र  पर लिख आया-
एक तुम ही तो थी , जो
मुझे तंग करती थी ,
अब , जब तुम नहीं हो , तो
मैं कुछ भी नहीं हूँ।

तुम्हे रोशनी पसंद नहीं थी ,
मुझे अँधेरा पसंद नहीं था ,
इसलिये तुम्हारी क़ब्र  पर ,
एक दीया जला रहा हूँ ,
ताकि , तुम्हें अहसास हो , कि
मैं अब भी तुम्हारे पास हूँ।

Thursday, May 28, 2020

झूठ और सच

' झूठ  ', ' सच ' से बड़ा होता है ,
लम्बे -लम्बे डग मार लेता है ,
' झूठ '  में तीन मात्रा ,
जब कि ,
' सच '  में दो ही मात्रा होता है ,
जरा सा फूँक दो , तो ,             
' सच ' हवा में उड़ जाता है ,
' झूठ ' पैर टिकाये ,
खड़ा रहता है।

Tuesday, May 19, 2020

त्रासदी

किसी मजदूर ने ही बनाये होंगे
रेल के डिब्बे ,
रेल के इंजन ,                                               
रेल की पटरियां ,
लेकिन कितनी त्रासदी है  ( कि  )
यह उन्हें नसीब  नहीं ,
( उल्टे ,रौंदती चली जाती है  )
कर देती है क्षत -विक्षत उनके शरीर ,
शरीर के साथ मन ,
छीन लेती है
उनकी पोटली में बंधी रोटियां
और                                                        
छितरा देती है पटरियों पर ।
नहीं , वह भूख से नहीं मरा ,
ना ही वह पैदल चलने से मरा ,
वह तो अपनी मौत मर गया है ,
आँसू न बहायें ,
कीमती है ,
मजदूरों का क्या !
ये तो यूँ ही मर - खप जाते हैं ,
मजदूर ही तो हैं ,
कोई  ......... ,
( लाट साहब तो नहीं )
वैसे , आँसुओं का क्या है ,
सुना है ,
घड़ियाल भी बहाते हैं
आठ - आठ आँसू    .... .....
रचना तिथि : -  09 -05 -2020

Friday, May 15, 2020

मैं ' सच ' बेच रहा हूँ

      ( 1  )
मैं  ' सच ' बेच रहा हूँ ,
बोलो , खरीदोगे ?
मँहगा नहीं है ,
बहुत सस्ता है ,
क्योकि ,  ' झूठ '
' सच 'से ज्यादा टिकाऊ है।
              ( 2 )
खुद के तलवे लगे जो जलने ,
मुझमें भाव दया का आया ,
नाव डूबने लगा जो अपना ,
मल्लाहों का याद हो आया ,
वरना ये तो सब अछूत हैं ,
कह कर इनको दूर भगाया।

Monday, May 11, 2020

श्रद्धांजलि - 1

समेट लेना वे सारी रोटियां ,
जो बिखरी पड़ी हैं
हमारी लाशों के बीच ,              
रेलवे लाइन किनारे ,
और ,
बाँट देना ,
उन गरीब ,बेबस मजदूरों,
उन भूखे , बदनसीब बच्चों
और
औरतों के बीच ,
जो न जाने कब  से
रोटी और घर की तलाश में
भागे जा रहे हैं
पाँव -पैदल ,
न सूरज उन्हें डराता ,
न बारिस उन्हें भिगोता ,
न ठंढ उन्हें सताता।
उनके साहस ,
उनके अडिग विश्वास ,
जिनके रीढ़ की हड्डी पर
यह भुवन टिका है ,
जो विश्व के विकास की
एक धुरी है ,
क्या नाम दें !
रचना तिथि :- 09 -05 -2020

Tuesday, May 5, 2020

बच्चों की कविता

भौं -भौं करता डॉगी आया  ,
खें -खें  करता बन्दर ,
हाथी दादा डर के मारे ,
बैठे घर के अन्दर।   

छोड़ चूहे बिल्ली खाती अब,
गाजर और टमाटर ,
खरहा देखो बड़े चाव से ,
खाये लाल चुकन्दर।

बादल देख के मेढक बोला ,
टर -टर -टर -टर -टर ,
डर कर मछली रानी भागी ,
पानी के अन्दर।

काँव -काँव  कौवा करता है ,
मैना पटर -पटर ,
सोन चिड़ैया का है देखो,
कितना मीठा स्वर।

Thursday, April 30, 2020

दुनिया तो एक रंगमंच है

छूट गए सब एक  - एक कर ,
अपने और पराये ,
खाली हाथ ही  जाना होगा ,
क्या लेकर थे आये।
बचपन बीता माँ की गोद में ,
पत्नि संग जवानी ,
स्वर्ण काल जीवन के हमने ,
सो कर के ही गंवाए।
जीवन के संघर्षों की भी ,
अपनी  एक कहानी ,
कभी रुलाया जी भर मुझको ,
कभी खूब मुस्काये।
काया जर्जर हुआ तो जाना ,
आया पास बुढ़ापा ,
अब तो है चलने की बारी ,
मनुआ तू क्यों रोये।
दुनिया तो एक रंगमंच है ,
सबका आना -जाना ,
जीवन के कर्तव्य निभा कर ,
तुमने रीत निभाये।

Saturday, April 4, 2020

सूरज जरूर आयेगा

गम न कर , आँसू न बहा ,
ये वक़्त है , गुजर जायेगा ,
दिल के जख्में न  गिन ,
ये भी भर जायेगा ,
बस इन्तजार कर ,
तू प्रात का ,
तम  भी ये कट जायेगा ,
सूरज जरूर आयेगा।

काल है , कराल है ,
संक्रमण का काल है ,
मुँह बन्द रख , मुँह बन्द रख ,
यह  भी चला  जायेग।
है हवाओं में जहर ,
दूरियाँ  बना ले तू ,
पास वह न आयेगा ,
खुद ही चला जायेगा।
रावणी दर्प है ,
है  अट्टहास कंस का ,
कर आह्वान कृष्ण का ,
सब फ़ना हो जायेगा।

Friday, March 13, 2020

मुझको तलाश है

मुझको तलाश है , नये  आसमान की ,
इस जहां से भी अलग , इक नये जहान की ,
प्यार का ही राज हो , खुशियां हजार हों ,
है तलाश मुझ को तो , ऐसे विहान की।