Saturday, December 24, 2016

बड़ी ठंढक सी लगती है

बड़ी ठंढक सी लगती है
तुम्हारे गेसू  में आ कर ।
तुम्हारे पास होता हूँ ,
सुकूँ इस दिल को मिलता है ,
तुम्हारी साँसों की खुशबू से ,
मेरा ये  दिल धड़कता है। 

छू कर नर्म  होठों को
पवन भी गुनगुनाता है ,
चुरा कर आँख का काजल
ये बादल भी मचलता  है।

गिरा जो शानो से आँचल
ये मौसम भी बहकता  है ,
तुम्हारी ही हँसी से तो
चमन भी खिल - खिलाता है।

घटाओं को शिकायत है
तेरी ज़ुल्फ़ों में ख़म क्यों है ,
जो तुमने ख़म को खोला तो
झमक कर घन बरसता है। 
 
ब्लॉग तिथि - 24 - 12 - 2016