बड़ी ठंढक सी लगती है
तुम्हारे गेसू में आ कर ।
तुम्हारे गेसू में आ कर ।
तुम्हारे पास होता हूँ ,
सुकूँ इस दिल को मिलता है ,
तुम्हारी साँसों की खुशबू से ,
मेरा ये दिल धड़कता है।
छू कर नर्म होठों को
पवन भी गुनगुनाता है ,
चुरा कर आँख का काजल
ये बादल भी मचलता है।
गिरा जो शानो से आँचल
ये मौसम भी बहकता है ,
तुम्हारी ही हँसी से तो
चमन भी खिल - खिलाता है।
घटाओं को शिकायत है
तेरी ज़ुल्फ़ों में ख़म क्यों है ,
जो तुमने ख़म को खोला तो
झमक कर घन बरसता है।
तुम्हारी साँसों की खुशबू से ,
मेरा ये दिल धड़कता है।
छू कर नर्म होठों को
पवन भी गुनगुनाता है ,
चुरा कर आँख का काजल
ये बादल भी मचलता है।
गिरा जो शानो से आँचल
ये मौसम भी बहकता है ,
तुम्हारी ही हँसी से तो
चमन भी खिल - खिलाता है।
घटाओं को शिकायत है
तेरी ज़ुल्फ़ों में ख़म क्यों है ,
जो तुमने ख़म को खोला तो
झमक कर घन बरसता है।
ब्लॉग तिथि - 24 - 12 - 2016
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